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________________ काशिका के व्याख्याता ५७५ निवासी, और द्रविडभाषाभाषी था।' हमारे मित्र यन्. सी. यस्. वेङ्कटाचार्य शतावधानी सिकन्दराबाद (आन्ध्र) ने १-३-६३ के पत्र में हरदत्त के देश के सम्बन्ध में जो निर्देश किये हैं, उनका संक्षेप इस प्रकार है क-हरदत्त मिश्र का अभिजन आन्ध्र था। उसने पदमञ्जरी में : देशभाषा का अप्रामाण्य दर्शाते हुए 'कूचिमञ्चीत्यादयः' का निर्देश किया है। 'कृचिमञ्चि' यह आन्ध्र प्रदेश के एक ग्राम का नाम है, और वह ग्राम आज भी विद्यमान है । द्रविड़देशवासी के लिए आन्ध्र प्रदेश के ग्राम का निर्देश करना असंभव है। ___ ख-'तातं पद्मकुमाराख्यम्' श्लोक में 'पद्मकुमार' नाम 'ब्रह्मय्य' १० नाम का संस्कृत रूपान्तर है। इसी प्रकार 'श्रीः' 'लक्ष्मम्म" नाम, का, 'अग्निकूमार' कोमरय्य' =कोमारय्य का। नामों के संस्कृतीकरण की ऐसी रीति आन्ध्र प्रदेश में प्रचुरता से विद्यमान है । ग-पदमञ्जरी में निदिष्ट यथाऽत्र द्रविडदेशे निविशब्दः उक्ति आन्ध्र प्रदेश से द्रविड़ देश में चले जाने पर ही उपपन्न हो सकती है। १५ अन्यथा वह 'यथास्मद्देशे निविशब्दः' इस प्रकार निर्देश करता। घ-हरदत्त ने आपस्तम्ब धर्मसूत्र (२।११।१६) की व्याख्या में भी 'तत्र द्रविडाः कन्यामेषस्थे सवितरि...':आदि निर्देश किया है। १. अनुष्ठानमपि चोलदेशे प्रायेणवम् । गौतम धर्म• टीका १४ । ४४ ॥ यस्यां वसन्ति यामुपजीवन्ति । यथा तीरेण कावेरि तव । प्रापस्तम्बगृह्यटीका, २० खण्ड १४, सूत्र ६.;. तथा एकाग्निकाण्ड भाष्य, प्राश्वलायनगृह्य (अनन्तशयन, मुद्रित) । चोलेष्ववस्थितस्तथैव हिमवन्तं दिक्षेरन् । प्राप० धर्म० व्याख्या २१२३७॥ द्राविड़ा कन्यामेषस्थे सवितर्यादित्यपूजामांचरन्ति । आप० धर्म० व्याख्या २२९।१६॥ किलासः त्वग्दोषः तेमल् इति द्रविडभाषायां प्रसिद्धः । ...गौतम. धर्म० ट्रीका ११ १६॥ (द्र० गुरुवर्य श्री चिन्नस्वामी शास्त्री लिखित २५ प्रापस्तम्ब गृह्य और धर्मसूत्र, काशी मुद्रित की भूमिका। उस्मानिया वि० वि० हैदराबाद से प्रकाशित पदमञ्जरी भाग १ की भूमिका (पृष्ठ १०) में श्री रामचन्द्रड ने 'तेमल इति द्रविडभाषायां प्रसिद्धः' के स्थान में 'वंसली (वर्तली) इति द्रविड़ानां प्रसिद्धः' पाठ उद्धृत किया है। । २. 'श्री' का पुल्लिङ्ग में 'लक्ष्मय्य', और स्त्रीलिङ्ग में 'लक्ष्मम्म' प्रयोग ३० होता है। . . . .
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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