________________
संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
५. हरदत्त मिश्र (सं० १११५ वि० )
हरदत्त मिश्र ने काशिका की 'पदमञ्जरी' नाम्नी व्याख्या लिखी हैं । इस व्याख्या के अवलोकन से उसके पाण्डित्य और ग्रन्थ की प्रौढ़ता स्पष्ट प्रतीत होती है। हरदत्त केवल व्याकरण का पण्डित नहीं है । इसने श्रौत गृह्य और धर्म आदि अनेक सूत्रों की व्याख्याएं लिखी हैं। हरदत्त पण्डितराज जगन्नाथ' के सदृश अपनी प्रत्यधिक प्रशंसा करता है ।"
५
१०
१५
५७४
परिचय - - हरदत्त ने पदमञ्जरी ग्रन्थ के आरम्भ में अपना परिचय इस प्रकार दिया है
'तातं पद्मकुमाराख्यं प्रणम्याम्बां श्रियं तथा । ज्येष्ठं चाग्निकुमाराख्यमाचार्यमपराजितम् ॥'
अर्थात् - हरदत्त के पिता का नाम 'पद्मकुमार' ( पाठान्तर - रुद्रकुमार), माता का नाम 'श्री', ज्येष्ठ भ्राता का नाम 'अग्निकुमार ' और गुरु का नाम 'अपराजित' था ।
प्रस्तुत श्लोक में 'पद्मकुमाराख्यम्' के स्थान में 'पद्मकुमाराय ' 'रुद्रकुमाराख्यं' तथा 'अग्निकुमाराख्यम्' के स्थान में 'अग्निकुमारार्यम्' पाठ भी क्वचिदुपलब्ध होता है, तथापि बहुहस्तलेखानुसार 'पद्मकुमाराख्यं' तथा 'अग्निकुमाराख्यं' पाठ ही अधिक प्रामाणिक हैं ।
हरदत्त ने प्रथम श्लोक में शिव को नमस्कार किया है । अतः वह शैव मतानुयायी था ।
२०
देश - ग्रन्थ के आरम्भ में हरदत्त ने अपने को 'दक्षिण' देशवासो लिखा है ।" पदमञ्जरी भाग २ पृष्ठ ५१६ से विदित होता है कि हरदत्त द्रविड़ देशवासी था । हरदत्तकृत अन्य ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि वह चोलदेशान्तर्गत कावेरी नदी के किसी तटवर्ती ग्राम का
२५
१. प्रक्रियात कंगन प्रविष्टो हृष्टमानसः । हरदत्तहरि : स्वरं विहरन् केन वार्यते । पदमञ्जरी भाग १, पृष्ठ ४९ ॥
२. तस्मै शिवाय परमाय दशाव्याय साम्बाय सादरमयं विहितः प्रणामः ।
३. यश्चिराय हरदत्तसंज्ञया विश्रुतो दशसु दिक्षु दक्षिणः । पृष्ठ १ । ४. लेट्ाब्दस्तु वृत्तिकारदेशे जुगुप्सित:, यथात्र द्रविडदेशे निविशब्दः ।