________________
काशिका के व्याख्याता
५७३
४. विद्यासागर मुनि (१११५ वि० से पूर्व) विद्यासागर मुनि ने काशिका की 'प्रक्रियामञ्जरी' नाम्नी टीका लिखी है । यह ग्रन्थ मद्रास राजकीय हस्तलेख पुस्तकालय के संग्रह में विद्यमान है। देखो-सूचीपत्र भाग २ खण्ड १ A पृष्ठ ३५०७ ग्रन्थाङ्क २४९३ । इस का एक हस्तलेख ट्रिवेण्डम् में भी है । देखो- ५ सूचीपत्र भाग ३ ग्रन्थाङ्क ३३॥ इस ग्रन्थ का प्रारम्भिक लेख इस प्रकार है।
'वन्दे मुनीन्द्रान् मुनिवृन्दवन्द्यान्, श्रीमद्गुरुन् श्वेतगिरीन् वरिष्ठान् । न्यासकारवचः पद्मनिकरोद्गीर्णमम्बरे
गृह्णामि मधुप्रीतो विद्यासागरषट्पदः ॥ वृत्ताविति-सूत्रार्थप्रधानो ग्रन्थो भट्टनल्पूरप्रभृतिभिविरचितो वृत्ति.............।
उपरिनिर्दिष्ट श्लोक से विदित होता है कि विद्यासागर के गुरु का नाम श्वेतगिरि था।
'संस्कृत प्राकृत जैन व्याकरण और कोश की परम्परा' ग्रन्थ में पृष्ठ १०३ पर प्रक्रिया मञ्जरीकार विद्यासागर मुनि का जैन ग्रन्थकार के रूप में उल्लेख किया है । यह प्रमाद है अथवा जैन लेखकों का जैनेतर लेखकों को भी जैन कहने की प्रक्रिया की विण्डम्बना है, यह लेखक ही जानें । ग्रन्थ के अन्त में निर्दिष्ट परमहंस २० परिव्राजकाचार्य निर्देश से स्पष्ट है कि विद्यासागर मुनि वैदिक मतानुयायी थे, इन के गुरु का नाम श्वेतगिरि था। यह भी इन के
वेदमतानुयायी होने का बोधक है, क्योंकि गिरि पुरी सरस्वती आदि . नाम वैदिक संन्यासियों के ही होते हैं।
काल
पूर्व-निर्दिष्ट उद्धरण में विद्यासागर मुनि ने केवल न्यासकार का उल्लेख किया है । पदमञ्जरी अथवा उसके कर्ता हरदत्त का उल्लेख नहीं है । इस से प्रतीत होता है कि विद्यासागर हरदत्त से पूर्ववर्ती है।
ग्रन्थ के अन्त में 'इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यविद्यासागरमुनीन्द्रविरचितायां.....' पाठ उपलब्ध होता है।