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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
श्रीमान शर्मा विरचित 'विजया' नाम्नी परिभाषावृत्ति टिप्पणी का वर्णन हम 'परिभाषा-पाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता' नामक २६ वें अध्याय में करगे।'
३. महान्यासकार (सं० १२१५ वि० से पूर्ववर्ती) . किसी वैयाकरण ने काशिका पर 'महान्यास' नाम्नी टीका लिखी थी। इस के जो उद्धरण उज्ज्वलदत्त की उणादिवत्ति, और सर्वानन्दविरचित अमरटीकासर्वस्व में उपलब्ध होते हैं, वे निम्न हैं -
१. टित्त्वमभ्युपगम्य गौरादित्वात् सूचीति महान्यासे ।' । २. वह्नतेः घञ्, ततष्ठन् इति महान्यासः।
३. चुल्लीति महान्यास इति उपाध्यायसर्वस्वम् ।
इन में प्रथम उद्धरण काशिका १।२। ५० के 'पञ्चसचिः उदाहरण की व्याख्या से उद्धृत किया है । द्वितीय उद्धरण का मूल स्थान अज्ञात है। ये दोनों उद्धरण जिनेन्द्रबुद्धिविरचित न्यास में उपलब्ध नहीं होते । अतः महान्यास उस से पृथक् है । महान्यास के कर्ता का नाम अज्ञात है । एक महान्यास क्षपणक व्याकरण पर भी था। मैत्रेय ने तन्त्रप्रदीप ४ । १ । १५५ पर उसे उद्धृत किया हैं।'
महान्यास का काल-सर्वानन्द ने अमरटीकासर्वस्व की रचना शकाब्द १०८१ अर्थात् वि० सं० १२१६ में की थी। यह हम पूर्व २० लिख चुके हैं । अतः महान्यासकार का काल सं० १२१६ से प्राचीन
है। महान्यास संज्ञा से प्रतीत होता है कि यह ग्रन्थ न्यास और अनुन्यास दोनों ग्रन्थों से पीछे बना है।
१. भाग २, पृष्ठ ३१६-३१७, तृ० सं०॥ २. उज्ज्वल उणादिवृत्ति, पृष्ठ १६५ । . ३. अमरटीका० भाग २, पृष्ठ ३७६ । ४. अमरटीका० भाग ३, पृष्ठ २७७ ।
५. देखो-धातुप्रदीप के सम्पादक श्रीशचन्द्र चक्रवर्ती ने भूमिका, पृष्ठ १ पर मैत्रेय-रक्षित विरचित तन्त्रप्रदीप में उद्धृत ग्रन्थ ग्रन्थकारों के ३० निर्देश में ४१११५५ पर क्षपणक व्याकरण महान्यास का उल्लेख किया है ।