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काशिका के व्याख्याता
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साम-यंप्राप्तमुभयोरुपादानं स उभयंप्राप्तौ कर्मणीत्यस्य विषयः । ... तदयुक्तम् । पृष्ठं ५, परिभाषासंग्रह, पृष्ठ १६३ ।
फेक्ट ने अपने बृहत् सूचीपत्र में अनुन्यास के नाम से तन्त्रप्रदीप का उल्लेख किया है, ' वह चिन्त्य है । सीरदेव ने परिभाषावृत्ति में 'अनुन्यासकार और तन्त्रप्रदीपकार के शाश्वतिक विरोध का उल्लेख किया है । यथा
'एतस्मिन् वाक्ये इन्दुमैत्रेययोः शाश्वतिको विरोधः । पृष्ठ ७६ परिभाषासंग्रह पृष्ठ २०५ ।
'उपदेशग्रहणानुवर्तनं प्रति रक्षितानुन्यासयोविवाद एव' । पृष्ठ २७ परिभाषासंग्रह, पृष्ठ १७६ ।
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अनुन्यासकार इन्दुमित्र का काल हम पूर्व (पृष्ठ ५२४-५२५) लिख चुके हैं । तदनुसार इन्दुमित्र का काल सं० ८०० से ११५० के मध्य है ।
धनुन्यास - सारकार - श्रीमान शर्मा
श्रीमान शर्मा नाम के विद्वान् ने सीरदेवीय परिभाषावृत्ति की १५ 'विजया' नाम्नी टिप्पणी में लिखा है
अनुन्यासादिसारस्य कर्त्रा श्रीमानशर्मणा । लक्ष्मीपतिपुत्रेण विजयेयं विनिर्मिता ॥
इससे ज्ञात होता है कि श्रीमान शर्मा ने 'अनुन्याससार, नाम का कोई ग्रन्थ रचा था। यह वारेन्द्र चम्पाहट्टि कुल का था । श्रीमान २० शर्मा ने अपने 'वर्षकृत्य' ग्रन्थ के अन्त में अपने को व्याकरण तर्क सुकृत ( = कर्मकाण्ड) आगम और काव्यशास्त्र का इन्दु कहा है शिष्य - श्रीमान शर्मा का एक शिष्य पद्मनाभ मिश्र है काल - श्रीमान शर्मा का काल सं० १५००-१५५० के मध्य है।
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१. सूचीपत्र भाग ५ । २ व्याकरणतर्कसुकृतागम काव्य वारि (शशी) न्दुनापरिसमात वर्षकृत्यम् । पुरुषोत्तमदेवीय परिभाषावृत्ति ( राजशाही ), भूमिका पृष्ठ १७ में उद्धृतः ।
३. अस्मत्प्रथमपरमगुरवः श्री श्रीमानभट्टाचार्यास्तु शब्दपरो निर्देशः :... : ४. श्रीमान शर्मा का उक्त वर्णनः पुरुषोत्तम देवीय परिभाषावृत्ति के सम्पा दक दिनेशचन्द्र भट्टाचार्य के निर्देशानुसार है । द्र० भूमिका पृष्ठ १६, १७ ।
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