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________________ संस्कृत व्याकरणशास्त्र-का इतिहास विभाग दर्शाये हैं।' एक पुराण-प्रोक्त, दूसरे अर्वाक्-प्रोक्त । इन दोनों विभागों के लिये कोई सीमा अवश्य निर्धारित करनी होगी। जो सीमा ब्राह्मण-ग्रन्थों को पुराण और नवीन विभा ग में बांटेगी, वही सीमा कल्प-सूत्रों के भी पुराण और नवीन विभाग करेगी । पाणिनि ५ के इस सूत्र से इतना स्पष्ट है कि अनेक कल्प-सूत्र नवीन ब्राह्मणों की अपेक्षा पुराण प्रोक्त है। ऐसी अवस्था में शाखा, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, कल्पसूत्र और आयूर्वेद की आर्ष-संहिताओं के प्रवचनकर्ता समान थे, और इनका एक काल में प्रवचन हुअा था, यही मानना होगा । अतएव १० पाश्चात्य विद्वानों की कालविभाग की कल्पना सर्वथा प्रमाणशून्य है। संस्कृत-भाषा का विकास पूर्व लिख चुके हैं कि सृष्टि के प्रारम्भ में वेद के आधार पर लौकिक-भाषा का विकास हमा। वह भाषा प्रारम्भ में अत्यन्त विस्तृत थी। वेद के वे समस्त शब्द जिन्हें सम्प्रति 'छान्दस' मानते हैं, उस १५ भाषा में साधारण रूप से प्रयुक्त थे, अर्थात् उस समय लौकिक-वैदिक पदों का भेद नहीं था। पाणिनि से प्राचीन वेद की शाखा, ब्राह्मण, आरण्यक, कल्पसूत्र, रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों में शतशः शब्द ऐसे विद्यमान हैं जिन्हें पाणिनीय वैयाकरण छान्दस वा आर्ष मानकर १. तुलना करो-'तथा पुराणं ताण्डम्' । लाट्या० श्रौत ७।१०।१७ ॥ २० इस सूत्र में ताण्ड ब्राह्मण का पुराण विशेषण स्पष्ट करता है कि लाट्यायन श्रौत के प्रवचन काल में पुराण और नवीन दो प्रकार का ताण्ड ब्राह्मण था । २. भारतीय ऐति ह्यानुसार यह सीमा है कृष्ण द्वैपायन व्यास का काल । कृष्ण द्वैपायन व्यास के शिष्य प्रशिष्यों द्वारा प्रोक्त ब्राह्मण और कल्प नवीन माने जाते हैं और कृष्ण द्वैपायन से पूर्ववर्ती २७ व्यासों के द्वारा तथा ऐतरेय शाट्यायन आदि द्वारा प्रोक्त प्राचीन कहे जाते हैं । विशेष द्रष्टव्य, इसी ग्रन्थ का 'प्राचार्य पाणिनि के समय विद्यमान संस्कृत वाङ्मय' शीर्षक छठे अध्याय का 'प्रोक्त' प्रकरण । ३. भरत ने इसे प्रतिभाषा कहा है। द्र०-१७।२७, २८ ॥ प्रतीत होता है कि भरतमुनि के समय कुछ वैदिक पद लोक में अप्रयुक्त हो गये थे। ३० अतएव उसने लौकिक की भाषा की अपेक्षा 'प्रतिभाषा' कहा।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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