________________
१५
संस्कृत व्याकरण - शास्त्र का इतिहास
मल्लिनाथ ने न्यास की 'न्यासोद्योत' नाम्नी टीका लिखी थी । १० प्रफेक्ट ने अपने बृहत् सूचीपत्र में इसका उल्लेख किया है । मल्लिनाथ ने स्वयं किरातार्जुनीय की टीका में 'न्यासोद्योत' के पाठ उद्धृत किये हैं ।
२५
५६८
संशय कर्तरि पुरुष एवेति तद्रत्नमतिः' ।'
इस उद्धरण में यदि तच्छब्द से न्यास ही अभिप्र ेत हो, तो मानना होगा कि रत्नमति ने न्यास पर कोई ग्रन्थ लिखा था । गणरत्नमहोदधि में वर्धमान (सं० १९९७) लिखता है -
३०
रत्नमतिना तु हरितादयो गणसमाप्ति यावदिति व्याख्यातम् ।' रत्नमति के व्याकरणविषयक अनेक उद्धरण अमरटीका सर्वस्व गणरत्नमहोदधि और धातुवृत्ति प्रादि में उद्धृत हैं
३ - मल्लिनाथ (सं० १२६४ से पूर्व )
मल्लिनाथ का काल - मल्लिनाथ का निश्चित काल प्रज्ञात है । सायण ने धातुवृत्ति में 'न्यासोद्योत' के पाठ उद्धृत किये हैं । सायण का काल संवत् १३७१-१४४४ तक माना जाता है । धातुवृत्ति का रचनाकाल सं० १४१५-१४२० के मध्य है, यह हम ' धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता ( २ ) ' नामक २१ वें अध्याय में लिखेंगे । २० अतः मल्लिनाथ का काल विक्रम की १४ वीं शताब्दी है ।
महिनाथ साहित्य और व्याकरण का अच्छा पण्डित था, यह उसकी काव्यटीका से भली प्रकार विदित होता है ।
मल्लिनाथकृत न्यासोद्योत का तन्त्रोद्योत के नाम से अमरचन्द्र सूरिविरचित बृहद्वृत्त्यवचूर्णि ग्रन्थ के पृष्ठ १५४ पर मिलता है । नन्दन मिश्र विरचित तन्त्रप्रदीपोद्योतन का भी हस्तलेख में 'न्यासो -
१. भाग ४, पृष्ठ ३ ॥
२. श्र० ३, श्लोक २३८ की व्याख्या, पृष्ठ २५२ ।
भाबस्य,
३ः उक्तं च न्यासोद्योतेन केवलं श्रूयमाणैव क्रिया निमित्तं कारकअपि तु गम्यमानापि । २ । १७, पृष्ठ २४, निर्णयसागर संस्करण । ४. पृष्ठ ३१, २१९ काशी संस्करण ।
५. तन्त्रोद्यतस्तु शतहायन शब्दस्य कालवाचकत्वाभावे 'तत्र कृत' इत्यने - नाणमेवेच्छति ।