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काशिका के व्याख्याता
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सम्पादक ने भी मैत्रेय रक्षित का काल सन् १०७५-११२५ ई० ( अर्थात् वि० सं० १९३२ - ११५२) माना है ।' तन्त्रप्रदीप के व्याख्याता
(१) नन्दन मिश्र - नन्दन मिश्र न्यायवागीश ने तन्त्रप्रदीप की 'तन्त्रप्रदीपोद्योतन' नाम्नी एक व्याख्या लिखी है । नन्दनमिश्र के पिता का नाम वाणेश्वर मिश्र हैं । इस ग्रन्थ के प्रथमाध्याय का एक हस्तलेख कलकत्ता के राजकीय पुस्तकालय में विद्यमान है । देखोपं० राजेन्द्रलाल संपादित पूर्वोक्त सूचीपत्र भाग ६, पृष्ठ १५०, ग्रन्थाङ्क २०८३ ।
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पुरुषोत्तमदेवीय परिभाषावृत्ति के सम्पादक श्री दिनेशचन्द्र भट्टा- १० चार्य ने जिस हस्तलेख का वर्णन किया है, उसके अन्त में पाठ है'इति धनेश्वर मिश्रतनयभीनन्दन मिश्रविरचिते न्यासोद्दीपने ।'
इस पाठ के अनुसार नन्दनमिश्र के पिता का नाम धनेश्वर मिश्र है, और ग्रन्थ का नाम है न्यासोद्दीपन । हां, दिनेशचन्द्र भट्टाचार्य ने यह तो स्वीकार किया है कि यह तन्त्रप्रदीप की व्याख्या है ।"
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(२) सनातन तर्काचार्य - इसने तन्त्रप्रदीप पर 'प्रभा' नाम्नी टीखा लिखी है | प्रो० कालीचरण शास्त्री हुबली का मैत्रेय रक्षित पर लेख भारतकौमुदी भाग २ में छपा है । उसमें उन्होंने इस टीका का उल्लेख किया है ।
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(३) तन्त्रप्रदीपालोककार - किसी अज्ञातनामा पण्डित ने तन्त्रप्रदीप पर 'आलोक' नाम्नी व्याख्या लिखी है । इसका उल्लेख भी प्रो० कालीचरण शास्त्री के उक्त लेख में है ।
हम इन ग्रन्थकारों के विषय में अधिक नहीं जानते ।
२ - रत्नमति (सं० १९९० से पूर्व )
सर्वानन्द (सं० १२१६) ने अमरटीकासर्वस्व ३ । १ । ५ पर २५ रत्नमति का निम्न पाठ उद्धृत किया है
'न तु संशयवति पुरुष इति न्यासः । श्रतः सप्तम्यर्थेबहुव्रीहिः
१. द्र० - राजशाही संस्करण, भूमिका, पृष्ठ १० ।
२. भूमिका, पृष्ठ १८ ।