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________________ काशिका के व्याख्याता ५६५ 1 होता । प्राचीन विद्वान् अपने मत से भिन्न मतों के सिद्धान्तों को भी भले प्रकार जानते थे । वह काल ही ऐसा था जब बौद्ध जैन और वैदिक मतानुयायियों का परस्पर संघर्ष चलता रहता था। साथ ही यह भी ध्यान में रखने योग्य बात है कि न्यास ग्रन्थ पाणिनीय व्याकरण पर लिखा गया है जो वेद का अङ्ग माना जाता है अत: उसके ५ व्याख्यान में तो उसे मूल ग्रन्थकार के मन्तव्यों के अनुसार ही व्याख्या करनी प्रावश्यक थी । हमारे मत में न्यासकार बौद्ध है । अत एव वैदिक प्रतीकों के व्याख्यान में विशेषकर स्वर विषय में उसने महती भूलें की हैं। ऐसी भूलें वैदिक मतानुयायी कभी नहीं कर सकता । उदाहरण के लिये हम १० नीचे दो उदाहरण देते हैं १. विभाषा छन्दसि - ( १२/३६ ) सूत्र की व्याख्या में उद्धृत इषे त्वोर्जे त्वा मन्त्र जो शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद की सभी शाखाओं का आद्य मन्त्र है, की व्याख्या में न्यासकार ने इषे और ऊर्जे पदों का प्रकारान्त इह और ऊर्ज पद का सप्तम्यन्त मानकर व्या १५ ख्यान किया है। यह समस्त वैदिक परम्परा के विपरीत है । इस मन्त्र के सभी व्याख्याकारों ने इन्हें चतुर्थ्यन्त माना है । मन्त्रार्थ भी चतुर्थ्यन्त मानने पर ही उपपन्न होता है । २ - यज्ञकर्मण्यजपन्यूङ् खसामसु ( ११२१३४ ) की काशिका में जप शब्द के अर्थ का जो निर्देश किया है। उस के दो पाठ हैं - जपोऽनु- २० करणमन्त्रः, जपोsकरणमन्त्रः । इन दोनों पाठों की न्यासकार ने व्याख्या की है । इन में प्रथम पाठ तो अशुद्ध हैं, द्वितीय पाठ ही शुद्ध है | वैदिक कर्मकाण्डीय परिभाषा में जप मन्त्र की व्याख्या प्रकरणो - मन्त्रः ही की जाती है । इस का अर्थ है जप मन्त्र वे कहाते हैं जिन से यज्ञ में कोई क्रिया नहीं की जाती है । २५ - न्यासकार यदि वैदिक होता तो उसे कर्मकाण्डीय जप मन्त्र की व्याख्या ज्ञात होती और वह लेखक प्रमाद से भ्रष्ट हुए जपोऽनुकरणमन्त्रः पाठ की व्याख्या न करता । इसी प्रकार जपोऽकरणमन्त्रः की जो व्याख्या न्यासकार ने की है वह भी वैदिक कर्मकाण्डीय परिभाषा से विपरीत होने से चिन्त्य है । नञ् को ईषद् प्रर्थवाचक मान कर की ३० गई ईषत् करणमुच्चारणं यस्य व्याख्या खींचातानी मात्र है । जपमन्त्र
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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