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काशिका के व्याख्याता
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कैश्चिदिति ईश्वरसेनजिनेन्द्रप्रभृतिभिः । पृष्ठ ४०५, वही संस्करण।
यदि अचंट का कैश्चिद् पद से ईश्वरसेन और जिनेन्द्रबुद्धि की ओर ही संकेत हो, जैसा कि दुर्वेक मिश्र ने व्याख्यान किया है, तब न्यासकार का काल वि० सं० ७०० के लगभग होगा। क्योंकि 'अर्चट' ५ का काल ईसा की ७ वीं शती का अन्त है ।
५- न्यास के सम्पादक श्रीशचन्द्र चक्रकर्ती ने न्यासकार का काल सन् ७२५-७५० ई०, अर्थात् वि० सं० ७८२-८०७ माना है ।
महाकवि माघ और न्यास महाकवि माघ ने शिशुपालवध के 'अनुत्सूत्रपदन्यासा' इत्यादि १० श्लोक में श्लेषालंकार से न्यास का उल्लेख किया है। न्यास के सम्मादक ने इसी के आधार पर माघ को न्यासकार से उत्तरवर्ती लिखा है, वह अयुक्त है, यह हम पूर्व लिख चुके हैं।' प्राचीन काल में न्यास नाम के अनेक ग्रन्थ विद्यमान थे। कोई न्यास ग्रन्थ भर्तहरिविरचित महाभाष्यदोपिका में भी उद्धृत है । एक न्यास मल्लवादि- १५ सरि ने वामनविरचित 'विश्रान्तविद्याधर' व्याकरण पर लिखा था। पूज्यपाद अपर नाम देवनन्दी ने भी पाणिनीयाष्टक पर 'शब्दावतार' नामक एक न्यास लिखा था। अत: महाकवि माघ ने किस न्यास की ओर संकेत किया है, यह अज्ञात है । हां, इतना निश्चित है कि माघ के उपर्युक्त श्लोकांश में जिनेन्द्रबुद्धिविरचित न्यास का उल्लेख नहीं २० है। क्योंकि शिशुपाल वध का रचना काल सं० ६८२-७०० के मध्य
भामह और न्यासकार भामह ने अपने 'अलंकारशास्त्र' में लिखा है
१. द्र०—पूर्व पृष्ठ ५०६ । २. देखो-पूर्व पृष्ठ ४१५ पर महाभाष्यदीपिका का ३६ वां उद्धरण ।
३. इसका वर्णन 'पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण' नामक १७ वें अध्याय में करेंगे।
४. देखो-पूर्व पृष्ठ ४८६ । ५. देखो-पूर्व पृष्ठ ५०७ ।