SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 598
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पन्द्रहवां अध्याय काशिका के व्याख्याता काशिका जैसे महत्त्वपूर्ण वृत्ति-ग्रन्थ पर अनेक विद्वानों ने टीकाएं लिखीं, उनमें से कई एक इस समय अप्राप्य हैं। बहुत से टीकाकारों के नाम भी अज्ञात हैं । हमें जितने टीकाकारों का ज्ञान हो सका, ५ उनका वर्णन इस अध्याय में करते हैं १. जिनेन्द्रबुद्धि काशिका पर जितनी व्याख्याएं उपलब्ध अथवा परिज्ञात हैं, उनमें बोधिसत्त्वदेशीय आचार्य जिनेन्द्रबुद्धि विरचित 'काशिकाविवरणपञ्जिका अपरनाम 'न्यास' सब से प्राचीन है। न्यासकार का 'बोधि- १० सत्त्वदेशीय' वीरुत् होने से स्पष्ट है कि न्यासकार बौद्धमत का प्रामाणिक प्राचार्य है।' न्यासकार का काल न्यासकार ने अपना किञ्चिन्मात्र भी परिचय नहीं दिया, अतः इसका इतिवृत्त सर्वथा अन्धकार में है । हम यहां न्यासकार के काल १५ निर्णय करने का कुछ प्रयत्न करते हैं १-हरदत्त ने पदमञ्जरी ४।१।२२ में न्यासकार का नामनिर्देशपूर्वक उल्लेख किया है। हरदत्त का काल विक्रम की १२ वीं शताब्दी का प्रथम चरण अथवा उससे कुछ पूर्व है । यह हम पूर्व (पृष्ठ ४२४) लिख चुके हैं। अतः न्यासकार विक्रम की १२ वीं २० शताब्दी के प्रारम्भ से प्राचीन है। . २-महाभाष्यव्याख्याता कैयट हरदत्त से पौर्वकालिक है, यह हम ' कैयट के प्रकरण में लिख चुके हैं । कैयट और जिनेन्द्रबुद्धि के अनेक वचन परस्पर अत्यन्त मिलते हैं । जिनसे यह स्पष्ट है कि कोई एक दूसरे से सहायता अवश्य ले रहा है। परन्तु किसी ने किसी का नाम २५ निर्देश नहीं किया । इसलिये उनके पौर्वापर्य के ज्ञान के लिये हम दोनों के दो तुलनात्मक पाठ उद्धृत करते हैं १. इस विषय में विशेष न्यासकार के प्रकरण के अन्त में देखें।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy