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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास प्रन्थ का प्रणयन एवं मुद्रण -आचार्यवर ने अष्टाध्यायी भाष्य की रचना सन् १९६० में प्रारम्भ की। दिसम्बर १९६३ तक पांच अध्यायों को पाण्डुलिपि लिखी गई। दिसम्बर १९६४ को इस का प्रथम भाग मुद्रित हुप्रा । तत्पश्चात् २१-२२ दिसम्बर की मध्य रात्रि ५ के २-३० बजे आप का अचानक हृद्गत्यवरोध से निधन हो गया। ___ बहिन प्रज्ञा कुमारी का सहयोग-पूज्य गुरुवर्य की अन्तेवासिनी, इस नाते से मेरी गुरुभगिनी प्रज्ञाकुमारी का अष्टाध्यायी भाष्य के लेखन आदि आर्य में प्रारम्भ से ही सहयोग था । अतः मैंने अ० ४-५ के भाष्य की प्रेस कापी बनाने का कार्य आप को ही सौंपा। उनके १० सहयोग से दिसम्बर १९६५ को द्वितीय भाग प्रकाशित हा । तृतीय भाग का लेखन-प्रस्तुत अति महत्त्वपूर्ण अष्टाध्यायी भाष्य को पूरा करना आवश्यक था अतः शेष अध्याय ६-७-८ का भाष्य लिखने के लिये भी मैंने बहिन प्रज्ञाकुमारी से अनुरोध किया। उन्होंने मेरे अनुरोध को स्वीकार करके प्राचार्यवर के अधूरे कार्य को १५ पूरा करने का कठिन प्रयास किया। इस प्रकार जनवरी १६६८ को अष्टाध्यायी भाष्य का तोसरा भाग प्रकाशित हुआ। अन्य ग्रन्थ-आचार्यवर श्री जिज्ञासु जी ने छोटे मोटे लगभग ८-१० ग्रन्थ लिखे हैं। उन में स्वामी दयानन्द सरस्वो के यजुर्वेदभाष्य के प्रारम्भिक १५ अध्यायों का हस्तलेख से मिलान करके सम्पादन २. करना और उस पर विवरण लिखना महत्त्वपूर्ण कार्य हैं । यह दो भागों में रामलाल कपूर ट्रस्ट बहालगढ़ (सोनीपत-हरयाणा) से प्रकाशित हो चुका है। हमने इस अध्याय में अष्टाध्यायी के ३६ वृत्तिकारों, ८ अज्ञातकर्तृ क वृत्तियों, और प्रसंगवश अनेक व्याख्याताओं का वर्णन किया २५ है। इस प्रकार हमने इस अध्याय में लगभग ६० पाणिनीय वैयाकरणों का वर्णन किया है। अब अगले अध्याय में काशिका के व्याख्याकारों का वर्णन किया जायगा।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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