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________________ अष्टाध्यायी के वृत्तिकार ५५६ प्रथमावृत्ति में प्रथम संस्कृत भाषा में प्रतिसूत्र पदच्छेद, विभक्ति, समास, अनुवृत्ति, सूत्र-वृत्ति और उदाहरण देकर हिन्दी में विवरण प्रस्तुत किया है । सूत्र के उदाहरणों की सिद्धि का स्वरूप प्रत्येक भाग के अन्त में दिया है। इस से पाणिनीय सूत्रों का अभिप्राय समझने में छात्रों को अत्यन्त सुगमता होती है। इस दष्टि से यह अष्टाध्यायी- ५ भाष्य (प्रथमावृत्ति) सभी प्राचीन अर्वाचीन वृत्तियों में श्रेष्ठ है । परिचय -श्री प्राचार्यवर का जन्म जिला जालन्धर (पंजाब) के अत्तर्गत मल्लूपोता ग्राम (थाना-बंगा) में १४ अक्टूबर सन् १९६२ ई० में हया था। आप के पिता का निधन ६ वर्ष की अवस्था में हो गया था। इन का पालन इतकी विधवा बुप्रा ने किया था। प्रारम्भ १० में गांव में उर्दू पढ़ी। पश्चात् जालन्धर में हाई स्कूल तक शिक्षा प्राप्त की। वहीं पढ़ते हए संस्कृत पढ़ी। पत्पश्चात् स्व० स्वामी पूर्णानन्द सरस्वती से अष्टाध्योयी महाभाष्य निरुक्तादि का अध्ययन किया। काशी में रहकर दर्शनों का और म० भ० चिन्नस्वामी जी शास्त्री से मीमांसा शास्त्र का अध्ययन किया। आपके द्वारा संस्कृत १५ भाषा की उन्नति और प्रचारको ध्यान में रख कर आपको १५ । अगस्त १९६३ को राष्ट्रपति-सम्मान से सम्मानित किया गया। अध्यापन कार्य-आपने सन १९७७ से अध्यापन कार्य प्रारम्भ किया, विशेष कर अष्टाध्यायी महाभाष्यादि पाणिनीय व्याकरण का। यह विद्या-सत्र निधन पर्यन्त (सं० २०२१)तक चलता रहा। इस सुदीर्घ २० काल में शतशः छात्रों को विद्यादान दे कर उपकृत किया । आप की अध्यापन शैली बहुत अद्भुत थी। कठिन से कठिन विषय बड़े सरल सरस ढंग से छात्रों को हृदयंगम करा देते थे । आपकी मान्यता थीछात्र यदि समझने में असमर्थ है तो वह छात्र का दोष नहीं, अध्यापक का दोष है। आर्यसमाज के क्षेत्र में स्वामी दयानन्द सेंरस्वती के निर्देशानुसार यथावत् रूप से अष्टाध्यायी-महाभाष्य आदि के पठन-पाठन को सर्व प्रथम प्रारम्भ करने का श्रेय आप कोही है । यद्यपि आर्यसमाज के क्षेत्र में अनेक गुरुकुलों में अष्टाध्यायी क्रम से पाणिनीय व्याकरण पढ़ाया जाता है, फिर भी उनके जीवन काल में तथा उसके पश्चात् ३० उनके विद्यालय में जिस प्रकार पठन-पाठन कराया जाता है वह अपने रूप में निराला है।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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