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संस्कृत व्याकरण- शास्त्र का इतिहास
जीवाराम शर्मा ने संस्कृत भाषा के प्रचार के लिये अनेक पुस्तिकाओं का प्रणयन किया । पञ्चतन्त्र में से अश्लीलांश निकाल कर भाषानुवाद सहित प्रकाशित किया ।
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६. गङ्गादत्त शर्मा (सं० १९२३ - १९९० )
गङ्गादत्त शर्मा ने गुरुकुल कांगड़ी (हरिद्वार) में अध्यापन करते हुए अष्टाध्यायी की संस्कृत में एक नातिलघु नातिविस्तृत मध्यम मार्गीय 'तत्त्वप्रकाशिका' नाम्नी वृत्ति का प्रणयन किया। उस का १० प्रथम भाग सं० १९३२ में और द्वितीय भाग सं० १९६४ में सद्धर्म प्रचारक यन्त्रालय जालन्धर से प्रकाशित हुआ । इस का द्वितीय संस्करण सं० २००६ में गुरुकुल मुद्रणालय, गुरुकुल कांगड़ी ( सहारनपुर) से प्रकाशित हुप्रा ।
परिचय - गङ्गादत्त शर्मा का जन्म 'बेलौन' ( बुलन्दशहर ) में १५ सनाढ्य ब्राह्मण कुल में संवत् १९२३ में हुआ था । आप के पिता का नाम श्री हेमराज वैद्य था । आपने सं० १९४४-४५ में मथुरा में स्वामी विरजानन्द सरस्वती के शिष्य उदयप्रकाश जी से प्रष्टाध्यायी पढ़ी । काशी के प्रसिद्ध विद्वान् काशीनाथ जी से नवीन व्याकरण और दर्शनों का अध्ययन किया, हरनादत्त भाष्याचार्य से महाभाष्य २० पढ़ा । सं० १९५७ से १९६२ तक गुरुकुल कांगड़ो में व्याकरण पढ़ाते रहे । सं० १९६४ में गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर का प्राचार्य पद स्वीकार किया और अन्त (सं० १९९०) तक वहीं अध्यापन करते रहे । सन् १९७२ में सीधे ब्रह्मचर्य से सन्यास की दीक्षा ग्रहण की स्वामी शुद्धबोध तीर्थ नाम से प्रसिद्ध हुए । आप का स्वर्गवास २५ सं० १९६० प्राश्विन शुक्ला ७ मी भौमवार को हुआ ।
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४. जानकी लाल माथुर ( सम्भवतः सं० १९८५) जयपुर निवासी राजकुमार माथुर के पुत्र जानकीलाल माथुर ने
१. इन के विस्तृत परिचय के लिए पं० भीमसेन शास्त्री लिखित ३० विरजानन्द प्रकाश, पृष्ठ १०८ - ११२ (तृ० सं०) देखें ।