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अष्टाध्यायी के वृत्तिकार .. ५५५ है जिस की संख्या १३.१.२६ १३१६ है।' यह वृत्ति प्रारम्भ से प्रथमाध्याय के तृतीय पाद के ७७ वें सूत्र (अधूरी) तक है। यह २०४२६ अठपेजी आकार के १५२ पृष्ठ तक है। आद्यन्त का मुख पत्र न होने से ग्रन्थ के लेखक का नाम तथा मुद्रण काल अज्ञात है ।
इस वृत्ति के प्रारम्भ में लगे पृष्ठ पर पूज्य गुरुवर पं० ब्रह्मदत्त । जिज्ञासू के हाथ का लेख है-पं० ज्वालादत्त,कृत इटावा, पं० भीमसेन प्रेस । उन्होंने सम्भवतः अन्य किसी प्रति के आधार पर यह उल्लेख अपनी प्रति पर किया होगा।
परिचय-ज्वालादत्त शर्मा कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। इन्होंने भी स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा संस्थापित फर्रुखाबाद की पाठशाला १० में अध्ययन किया था। तत्पश्चात् ये भी भीमसेन शर्मा के समान ही स्वामी दयानन्द सरस्वती के वेदभाष्य की संस्कृत का भाषानुवाद का कार्य तथा वैदिक यन्त्रालय में रहते हुएं संशोधन को कार्य करते रहे।
इस से अधिक 'इन के विषय में कुछ ज्ञात नहीं है। "
५. जीवाराम शर्मा (सं० १९६२ वि०) ... मुरादाबाद नगरस्थ 'बलदेव. आर्य संस्कृत पाठशाला' के प्रथम अध्यापक जीवाराम शर्मा ने अष्टाध्यायी की संस्कृत और हिन्दी में एक वृत्ति लिखी । इस वृत्ति का प्रथम संस्करण सन् १९०५ (-- सं० १९६२ वि०) में प्रकाशित हुआ। .... .... २० - इस वृत्ति में सूत्रपाठ के ऊपर ही १-२-३ आदि संख्या के निर्देश द्वारा सूत्रस्थ पदों की विभक्तियों का निर्देश किया है । तत्पश्चात संस्कृत में सूत्र की वृत्ति और उदाहरणों का उल्लेख किया है। तदनन्तर हिन्दी में सूत्र की वृत्ति लिखी है।
१. पं० भीमसेन शर्मा कृत अष्टाध्यायी वृत्ति और इस मुप्ति पर भूल से २५ एक ही संख्या पड़ गई है।
२. द्र० पं० लेखरामकृत स्वामी दयानन्द का जीवन चरित, हिन्दी सं०, .. ! पृष्ठ, ८०५ सं० २०२८ वि० देहली
३. यह काल ग्रन्थ के प्रथम संस्करण के सन् १९०५ के अनुसार, दिया है। .