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________________ ७० अष्टाध्यायी के वृत्तिकार ५५३ इन में प्रथम दो अध्याय गोपालदत्त शर्मा लिखित हैं और तृतीय अध्याय गणेशदत्त शर्मा द्वारा । प्रत्येक अध्याय अलग-अलग छपा था। काल-इस व्याख्या के तीसरे अध्याय के भाग पर मुद्रण काल सन् १८६३ (=सं० १९५०) छपा है। अतः यह व्याख्या इसी समय ५ लिखी गई होगी। इस व्याख्या में प्रत्येक सूत्र की हिन्दी में वृत्ति और उदाहरण दिये गये हैं। यह व्याख्या ऐङ्गलो संस्कृत यन्त्रालय अनारकली लाहौर में छपी थी। इस का प्रकाशन लाला रामसहायी नरूला भूतपूर्व कोषाध्यक्ष १० आर्यसमाज लाहौर ने किया था। अगले अध्यायों की व्याख्या लिखी गई वा नहीं, छपी अथवा नहीं छपी, यह हमें ज्ञात नहीं हो सका। ३-भीमसेन शर्मा (सं० १९११-१६७४ वि०) १५ पं० भीमसेन शर्मा ने पाणिनीय अष्टक पर संस्कृत और हिन्दी भाषा में एक वृत्ति लिखी थी । इस में प्रत्येक सूत्र की पदच्छेद विभक्ति निर्देश पूर्वक संस्कृत और हिन्दी में वृत्ति प्रौर उदाहरण दिये गये हैं । यह वृत्ति पूर्वार्ध और उत्तरार्ध दो भागों में छपी थी। हमारे संग्रह में इस के प्रथम भाग की सं० १९६१ में द्वितीय बार छपे २० प्रथम भाग की एक प्रति है।' इस से स्पष्ट है कि पं. भीमसेन शर्मा ने अष्टाध्यायी की वृत्ति सं० १९५१-१९५५ के मध्य लिखी होगी। परिचय-पं० भीमसेन का जन्म उत्तर प्रदेश के एटा जिले के १. द्र० रा० ला० क० ट्र० पुस्तकालय, संख्या १३.१.२६/१३१६ ॥ २. भीमसेन शर्मा ने सं० १६५० में गणरत्नमहोदधि छपवाई थी। उसकी ५२ , पीठ पर छपी ग्रन्थ सूची में पाणिनीयाष्टक का उल्लेख नहीं है । प्रथम आवृत्ति के बिकने में भी कुछ समय लगा होगा। प्रत: सं० १९५१-१९५५ की हमने कल्पना की है। ३. प्रगला परिचय पूर्णसिंह वर्मा लिखित पं० भीमसेव शर्मा का जीवन चरित, सं० १९७५ के आधार पर दिया है।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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