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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
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शतशः गुरुकुलों तथा विद्यालयों की स्थापना करके प्राचीन प्रार्ष-ग्रन्थों -पाठन को पुनर्जागृत किया । संस्कृत वाङ् मय के अध्ययन क्रम में व्याकरण शास्त्र को प्रथम स्थान प्राप्त हैं । अतः स्वामी दयानन्द सरस्वती के निधन के समनन्तर ही पाणिनीय अष्टाध्यायी पर संस्कृत ५ तथा हिन्दी में वृत्ति-ग्रन्थों के प्रणयन का क्रम आरम्भ हो गया । अब तक अष्टाध्यायी पर अनेक वृत्ति ग्रन्थ पूर्ण वा अपूर्ण लिखे गये तथा मुद्रित हुए। रामलाल कपूर ट्रस्ट, बहालगढ़ ( सोनीपत - हरयाणा ) के पुस्तकालय में जो कतिपय ग्रन्थ सुरक्षित है, उनका प्रति संक्षेप से नीचे उल्लेख किया जाता है । इस से पाणिनीय व्याकरण के पठन१० पाठन के क्रम में स्वामी विरजानन्द सरस्वती और उनके शिष्य स्वामी दयानन्द सरस्वती ने जो क्रान्ति की थी, उस का कुछ आभास पाठकों को मिल सकेगा ।
स्वामी दयानन्द सरस्वती विरचित अष्टाध्यायी भाष्य का वर्णन हम पूर्व पृष्ठ ५४४ से ५४७ पर कर चुके हैं ।
१. देवदत्त शास्त्री (सं० १९४३ वि० ) '
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हरिद्वार निवासी पं० देवदत्त शास्त्री ने अष्टाध्यायी की संस्कृत भाषा में संक्षिप्त वृत्ति लिखने का उपक्रम किया था । इस का प्रथमा ध्याय 'अष्टाध्यायी' शीर्षक से वि० सं० १९४३ में लखनऊ के कान्य कुब्जयन्त्रालय ( लीथो) में छपा उपलब्ध है।' इस के मुखपृष्ठ पर आठ अध्यायों को आठ भागों में प्रकाशित करने का निर्देश है । अगले भाग छपे वा नहीं हमें ज्ञात नहीं है ।
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इस वृत्ति में सूत्र की संस्कृत में वृत्ति, उदाहरण और प्रत्युदाहरण दिये गये हैं । प्रथमाध्याय २० X २६ आठपेजी प्रकार में ४६ पृष्ठों में छपा है ।
२ - गोपालदत्त और गणेशदत्त (सं० १६५० वि० ) ' गोपालदत्त देवगण शर्मा तथा गणेशदत्त शर्मा द्वारा आर्यभाषा (हिन्दी) में लिखित तथा मुद्रित वृत्ति के तीन अध्याय मिलते हैं । *
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१. यह काल वृत्ति पर छपा हुआ है ।
२. रा० ला० क० ट्रस्ट पुस्तकालय, संख्या १३.१.२६/१३१३ । ३. यह काल वृत्ति पर छपे हुए सन् १८६३ के अनुसार है । ४. रा० ला० क० ट्रस्ट पुस्तकालय, संख्या १३.१.२७/१३१४॥