________________
२२
संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
(क) द्रष्टप्रवक्तृसामान्याच्चानुमानम् । य एवाप्ता वेदार्थानां द्रष्टारः प्रवक्तारश्च त एवायुर्वेदप्रभृतीनाम् ।।
अर्थात् जो आप्त-ऋषि वेदार्थ के द्रष्टा और प्रवक्ता थे वे ही आयुर्वेद के द्रष्टा और प्रवक्ता थे।
पुन: न्यायभाष्य ४।१।६२ में लिखा है
(ख) द्रष्ट्रप्रवक्तृसामान्याच्चाप्रामाण्यानुपपत्तिः । य एव मन्त्रब्राह्मणस्य द्रष्टारः प्रवक्तारश्च ते खल्वितिहासपुराणस्य धर्मशास्त्रस्य चेति।
अर्थात् जो ऋषि मन्त्रों के द्रष्टा और ब्राह्मण-ग्रन्थों के प्रवक्ता थे, १०. वे ही इतिहास, पुराण और धर्मशास्त्र के प्रवक्ता थे।
इस सिद्धान्त की पुष्टि प्रायुवेदोय चरक संहिता प्रथमाध्याय से भी होती है। उसमें आयुर्वेद की उन्नति और प्रचार के परामर्श के लिये एकत्रित होने वाले कुछ ऋषियों के नाम लिखे हैं । अन्त में उन सब का विशेषण 'ब्रह्मज्ञानस्य निधयः" दिया है। उनमें के अनेक ऋषि शाखा, ब्राह्मण और धर्मशास्त्र आदि के प्रवक्ता थे । आयुर्वेद _ की हारीत संहिता के प्रवक्ता महर्षि हारीत' का धर्मशास्त्र इस समय
उपलब्ध है। वेद की हारीत संहिता का उल्लेख अनेक वैदिक-ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। अतः प्राचार्य वात्स्यायन का उपर्युक्त लेख अत्यन्त प्रामाणिक है।
अब हम इसी प्राचीन ऐतिह्य-सिद्ध सिद्धान्त की पुष्टि में न्यायभाष्य से पौर्वकालिक एक नया प्रमाण उपस्थित करते हैं । कुछ दिन हुए मीमांसा-शावर-भाष्य पढ़ाते हुये जैमिनि के निम्न सूत्र की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट हुआ।
(ग) जैमिनि शाखा और उस के ब्राह्मण के प्रवक्ता भारतयुद्ध२५ कालीन महामुनि जैमिनि ने पूर्वमीमांसा के कल्पसूत्र-प्रामाण्याधिकरण
में लिखा है- ..
१. चरक सूत्रस्थान १॥१४॥ २. चरक सूत्रस्थान १।३१ में स्मृत ॥
३. ते० प्रा० १४।१८। इस पर भाष्यकार माहिषय लिखता है-हारीत३० स्याचार्यस्य शाखिनः ...... ।
४. वैशाख वि० सं० २००३=अप्रेल सन् १९४६ ।