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________________ ग्रन्थाङ्क ५५० . संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास शाली क्षेत्र निवासी किसी द्विजन्मा की रचना है । देखो-ट्रिवेण्डम के राजकीय पुस्तकालय का सूचीपत्र, भाग ६, ग्रन्थाङ्क ३४ । ___ मैसूर राजकीय पुस्तकालय के सूचीपत्र, पृष्ठ ३१५ पर 'पाणि नीयसूत्रवत्ति टिप्पणी' नामक ग्रन्थ का उल्लेख हैं। उसका कर्ता ५ 'देवसहाय' है। अष्टाध्यायी की अज्ञातकर्तृक वृत्तियां मद्रास राजकीय पुस्तकालय के नये छपे हुए बृहत् सूचीपत्र में अष्टाध्यायी की ५ वृत्तियों का उल्लेख मिलता है । वे निम्न हैं ग्रन्थनाम ४०. पाणिनीय सूत्रवृत्ति ११५७७ ४१. पाणिनीय-सूत्रविवरण ११५७८ ४२. पागिनीय-सूत्रविवृति ११५७९ ४३. पाणिनीय-सूत्रविकृति लघुत्ति कारिका ११५८० ४४. पाणिनीय-सूत्रव्याख्यान उदाहरण श्लोकसहित ११५८१ ' सम्भवतः अन्तिम ग्रन्थ वहीं है जो मद्रास गवर्नमेण्ट अोरियण्टल सीरिज में दो भागों में छप चुका है । इस का लेखक मणलूर-वीरराघवाचार्य है। इस में सिद्धान्तकौमुदी में भट्टोजि दीक्षित द्वारा उदाहृत उदाहरणों के प्रयोग निदर्शनार्थ विविध ग्रन्थों से श्लोक उदाहृत किये हैं। यदि उपरि निर्दिष्ट वही ग्रन्थ है जो मद्रास से छपा है तो वह अष्टाध्यायी की वृत्ति नहीं है। ___४५, ४६-डी० ए० वी० कालेज लाहौर के लालचन्द पुस्तकालय में पाणिनीय सूत्र की दो वृत्तियां विद्यमान हैं। देखो-ग्रन्थाङ्क ३७५०, ६२८१ । ये दोनों वृत्तियां केरल लिपि में लिखी हुई हैं । ४७–सरस्वतीभवन काशी के संग्रह में पाणिनीयाष्टक की एक अज्ञातकर्तृक वृत्ति वर्तमान है। देखो-महीधर संग्रह वेष्टन सं० २८ । इस प्रकार अन्य पुस्तकालयों में भी अनेक अष्टाध्यायी-वत्तियों के हस्तलेख विद्यमान हैं । इन सब का अन्वेषण होना परमावश्यक है।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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