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________________ अष्टाध्यायी के वृत्तिकार ५४१ मन्दिर के पुस्तकालय से प्राप्त हुए। वे इस का सम्पादन कर रहे हैं । परिचय ५. विश्वेश्वर ने अपना नाममात्र परिचय दिया है। उसके अनुसार इस के पिता का नाम लक्ष्मीधर है । पर्वतीय विशेषण से स्पष्ट है कि यह पार्वत्य देश का है । ग्रन्थकार की मृत्यु ३२-३४ वर्ष के वय में हो हो गई थी । काल - ग्रन्थकार ने भट्टोजिदीक्षित का स्थान-स्थान पर उल्लेख किया है, परन्तु उसके पौत्र हरिदीक्षित अथवा तत्कृत पौढमनोरमाव्याख्या 'शब्दरत्न' का कहीं भी उल्लेख न होने से प्रतीत होता है कि १० विश्वेश्वर सूरि ने 'शब्दरत्न' की रचना से पूर्व अपना ग्रन्थ लिखा था।' अतः इसका काल वि० सं० १६००-१६५० के मध्य होना चाहिए । 'हिस्ट्री ग्राफ क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर' के लेखक कृष्णमाचारिया ने इसका काल ईसा की १८ वीं शती लिखा है । ' वह चिन्त्य है | जैन लेखकों का भ्रम - 'संस्कृत प्राकृत जैन व्याकरण और कोश की परम्परा" नामक ग्रन्थ के पृष्ठ १०१ में विश्वेश्वर सूरि का परिचय दिया है । और पृष्ठ १४० - १४२ तक पाणिनीय आदि व्याकरणों पर जैनाचार्यो को टीकाएं शीर्षक के अन्तर्गत संख्या ४६ पर 'व्याकरणसिद्धान्तसुधानिधि' के लेखक 'विश्वेश्वरसूरि' का जैनाचार्य के रूप में उल्लेख किया है । इसी प्रकार इसी ग्रन्थ के पृष्ठ १०० में राघव सूरि पेरु सूरि रामकृष्ण दीक्षित सूरि श्रादि को जैनाचार्य माना है । यह महती भूल है । 'सूरि' शब्दमात्र का प्रयोग देखकर लेखक ने इन्हें जैनाचार्य मान लिया। यदि इन ग्रन्थों के मंगलाचरणों को भी लेखक ने पढ़ा होता तो वह ऐसी भूल न करता । २० २५ १. द्र० – ग्रन्थ की भूमिका | २. द्र० - पैराग्राफ ०६, पृष्ठ ७६६ । ३. इस ग्रन्थ में अनेक लेखकों के लेख संगृहीत हैं। इसे 'श्री कालूगणी जन्मशताब्दी समारोह समिति' छापर ( राजस्थान) ने फा० शु० २ सं० २०३३ में प्रकाशित किया है ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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