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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
३-हमारा विचार है कि अप्पय्य दीक्षित का काल सामान्यतया वि० सं० १५७५-१६५० के मध्य होना चाहिए। तभी विट्ठल, भट्टोजि दीक्षित और नीलकण्ठ दीक्षित के लेखों का समन्वय हो
सकता है। संख्या ५ पर उद्धृत प्रमाण भी इसी काल को पुष्टि ५ करता है।
४- हमारा यह भी विचार है कि अप्पय्य दीक्षित नाम के सम्भवतः दो व्यक्ति हों। दाक्षिणात्य परम्परा के अनुसार अप्पय्य दीक्षित के पौत्र का भी यही नाम हो सकता है । यदि यह प्रमाणान्तर
से परिज्ञात हो जाए. तो सभी कठिनाइयों का समाधान अनायास हो १० सकता है।
२६. नीलकण्ठ वाजपेयी (सं० १६००-१६७५ वि०) नीलकण्ठ वाजपेयी ने अष्टाध्यायी पर 'पाणिनीयदीपिका' नाम्नी वत्ति लिखी थी। इस वत्ति का उल्लेख नीलकण्ठ ने स्वयं परिभाषा१५ वृत्ति में किया है।' यह 'पाणिनीयदीपिका' वत्ति सम्पत्ति अनुपलब्ध
है । ग्रन्थकार के काल आदि के विषय में 'महाभाष्य के टीकाकार' प्रकरण में लिखा जा चुका है।'
२७. विश्वेश्वर सूरि (सं० १६००-१६५० वि०) २० विश्वेश्वर सूरि ने अष्टाध्यायी पर भट्टोजि दीक्षित विरचित
शब्दकौस्तुभ के आदर्श पर एक अति विस्तृत व्याख्या लिखी है। इसका नाम 'व्याकरण-सिद्धान्त-सुधानिधि' है। यह आदि के तोन अध्यायों तक ही मुद्रित हुआ।
श्री दयानन्द भार्गव (अध्यक्ष संस्कृत विभाग, जोधपुर विश्व५२ विद्यालय) ने अपने १९-११-७६ के पत्र में सूचित किया है कि उन्हें
'व्याकरण-सिद्धान्त-सुधानिधि के शेष ४-८ तक पांच अध्याय भी मिल गये हैं। उन्हें ये अध्याय सन् १९७३ में जम्मू के रघुनाथ
१. अस्मत्कृतपाणिनीयदीपिकायां स्पष्टंम् । पृष्ठ २६ ॥ २. द्र०-पूर्व पृष्ठ ४४१-४४२ ।