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अष्टाध्यायी के वृत्तिकार
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७ - हिन्दुत्व के लेखक ने लिखा है - ' नृसिहाश्रम की प्रेरणा से अप्पय्य दीक्षित ने 'परिमल' 'न्यायरक्षामणि' और 'सिद्धान्तलेश' आदि ग्रन्थों को रचना की थी ।" नृसिंहाश्रम विरचित 'तत्त्वविवेक' ग्रन्थ की परिसमाप्ति वि० सं० १६०४ में हुई थी, ऐसा स्वयं निर्देश किया है । नृसिहाश्रम 'प्रक्रियाप्रसादकौमुदी' के लेखक विट्ठल द्वारा स्मृत ५ गाथाश्रम का शिष्य हैं, यह हम पूर्व (पृष्ठ ४३७, टि० ५) लिख चुके हैं। ब्रिट्ठल की प्रक्रियाको मुदीटीका का एक हस्तलेख वि० सं० १५३६ का उपलब्ध है, यह भी हम पूर्व ( पृष्ठ ४४० ) लिख चुके हैं ।
८ - ' संस्कृत साहित्य का इतिहास, के लेखक कन्हैयालाल पोद्दार अप्पय्य दीक्षितका का काल सन् १६५७ अर्थात् वि० सं० १७१४ १० पर्यन्त माना है । वे लिखते हैं- 'सन् १६५७ (सं० १७१४) में काशी
मुक्तिमण्डप में एक सभा हुई थी, जिसमें निर्णय किया गया था कि महाराष्ट्रीय देवर्षि ( देवसखे ) ब्राह्मण पङिक्तपावन हैं। इस निर्णयपत्र पर अप्पय्य दीक्षित के भी हस्ताक्षर हैं । यह निर्णयपत्र श्री प्रिपुटकर ने 'चितले भट्ट प्रकरण' पुस्तक में मुद्रित कराया है ।'
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निष्कर्ष - इन उपर्युक्त सभी प्रमाणों पर विचार करने के हम इस निर्णय पर पहुंचे हैं कि
१ - पिपुटकर द्वारा प्रकाशित निर्णयपत्र निश्चय ही बनावटी हैं, थवा यह अप्पय्य दीक्षित अन्य व्यक्ति है । क्योंकि नीलकण्ठ दीक्षित शिवलीलार्णव काव्य से विदित होता है कि उसकी रचना ( वि० २० सं० १६६४) तक अप्पय्य दीक्षित स्वर्गत हो चुके थे ।*
२ – यदि 'हिन्दुत्व' के लेखक रामदास गौड़ की संख्या ६ में उद्धृत मत (सं० १६०८ - १६८०) स्वीकार किया जाए, तो संख्या
७ में निर्दिष्ट उन्हीं के लेख से (नृसिंहाश्रम ने सं० १६०४ में 'तत्त्व
विवेक' लिखा ) विपरीत पड़ता है । उधर नृसिंहाश्रम के गुरु २५
जगन्नाथाश्रम प्रक्रिया कौमुदीप्रसाद के लेखक विट्ठल के समकालिक
贵片
१. हिन्दुत्व, पृष्ठ ६२६ ।
३. सं० सा० इति ० भाग १, पृष्ठ २८५ ।
४. द्व० - पूर्व पृष्ठ ५३८ टि० १ ।
१. ० - पूर्व पृष्ठ ४३७, टि० ५ ।
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२. हिन्दुत्व, पृष्ठ ६२४ ।
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