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________________ ५३६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास समकालिक कहे जाते हैं। परन्तु इसमें कोई दृढ़ प्रमाण नहीं है।' पण्डितराज ने शेष कृष्ण के पुत्र वीरेश्वर अपरनाम रामेश्वर से विद्याध्ययन किया था। विट्ठल ने वि० सं० १५३६ से कई वर्ष पूर्व वीरेश्वर से व्याकरण पढ़ा था, यह हम पूर्व पृष्ठ ४४० पर लिख चुके ५ हैं। इस प्रकार पण्डितराज जगन्नाथ का काल न्यूनातिन्यून वि० सं० १५७५-१६६० तक स्थिर होता है। परन्तु इतना लम्बा काल सम्भव प्रतीत नहीं होता है । हम इस कठिनाई को सुलझाने में असमर्थ हैं । भट्टोजि दीक्षित ने शेष कृष्ण से व्याकरणशास्त्र का अध्ययन किया था। भट्टोजि दीक्षित ने अपने 'शब्दकौस्तुभ और 'प्रौढमनोरमा' ग्रन्थों १० में बहत स्थानों पर शेष कृष्णविरचित प्रक्रियाप्रकाश का खण्डन किया है । अतः पण्डितराज जगन्नाथ ने प्रौढमनोरमाखण्डन में भट्टोजि दीक्षित को 'गुरुद्रोही' शब्द से स्मरण किया है। प्रौढमनोरमाखण्डन के विषय में सोलहवें अध्याय में लिखेंगे। १५ २५. अप्पय्य दीक्षित (१५७५-१६५० वि० के मध्य) अप्पय्य दीक्षित ने पाणिनीय सूत्रों की 'सूत्रप्रकाश' नाम्नी व्याख्या लिखी है। इसका एक हस्तलेख 'अडियार के राजकीय पुस्तकालय' में विद्यमान है । देखो-सूचीपत्र भाग २, पृष्ठ ७५ । परिचय अप्पय्य दीक्षित के पिता का नाम 'रङ्गराज अध्वरी' और पितामह का नाम 'प्राचार्य दीक्षित' था। कई इनका पूरा नाम 'नारायणा ० १. एक श्लोक है---'यष्ट विश्वजिता यता परिधरं सर्वे बुधा निजिता, भट्टोजिप्रमुखाः स पण्डितजगन्नाथोऽपि निस्तारितः । पूर्वघे चरमे द्विसप्ततितम स्याब्दस्य सद् विश्वजिद्, याजी यश्च चिदम्बरे स्वयमभजन् ज्योतिः सतां २५ पश्यताम् ॥ रसङ्गाधर हिन्दी टीका (काशी) में उद्घत । २. अस्मद्गुरुवीरेश्वरपण्डितानां । प्रौढमनोरमाखण्डन, पृष्ठ १ । ३. स्यति सर्व गुरुगृहाम् । प्रौढमनोरमाखण्डन, पृष्ठ १ । ४. अप्पय्य दीक्षित ने 'न्यायरक्षामार्ग' में यही नाम लिखा है-'प्राचार्य दीक्षित इति प्रथिताभिधानम् । “अस्मत्पितामहमशेषगुरु प्रपद्ये ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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