SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 574
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ अष्टाध्यायी के वृत्तिकार ५३७ चार्य था ऐसा कहते हैं । इनका गोत्र भारद्वाज था। यह अपने समय में शैवमत के महान् स्तम्भ माने जाते थे । अप्पय्य दीक्षित के लघु भ्राता का नाम 'अच्चान दीक्षित' था। अचान दीक्षित के पौत्र नीलकण्ठ दीक्षित के 'शिवलीलार्णव' काव्य से ज्ञात होता कि अप्पय्य दीक्षित ७२ वर्ष की आयु तक जीवित रहे, और उन्होंने ५ लगभग १०० ग्रन्य लिखे।' काल अप्पय्य दीक्षित का काल भी बड़ा सन्दिग्ध सा है। उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर वह वि० सं० १५५०-१७२० के मध्य विदित होता है । अतः हम इनके काल-निर्णय पर उपलब्ध सभी सामग्री १० संगृहीत कर देते हैं, जिससे भावी लेखकों को विचार करने में सुविधा १-हमने महाभाष्य के टीकाकार शेष नारायण के प्रकरण में पृष्ठ ४४० पर लिखा है कि विट्ठलकृत 'प्रक्रियाकौमुदीप्रसाद' का वि० सं० १५३६ का एक हस्तलेख लन्दन के इण्डिया प्राफिस के पुस्तकालय १५ में विद्यमान है। भट्टोजि के गुरु शेष कृष्ण ने प्रक्रियाकौमुदी पर 'प्रक्रियाप्रकाश' नाम की एक व्याख्या लिखी थी। शेष कृष्ण को चिरजीवी मानकर हमने भट्टोजि दीक्षित का काल वि० सं० १५७०-१६५० के मध्य स्वीकार किया है (द्र०-पूर्व पृष्ठ ४८६४८७) । भट्टोजि दीक्षित ने 'तत्त्वकौस्तुभ' में अप्पय्य दीक्षित को २० नमस्कार किया है। इसलिए अप्पय्य दीक्षित का काल वि० सं० १५७५-१६५० के मध्य होना चाहिए। २-अप्पय्य दीक्षित के पितामह प्राचार्य दीक्षित विजयनगराधिप कृष्णदेव राय के सभा-पण्डित थे। कृष्णदेव राय का राज्यकाल वि० सं० १५६६-१५८६ तक माना जाता है । अतः अप्पय्य दीक्षित का २५ काल वि० सं० १५५०-१६२५ तक सामान्यतया माना जा सकता है। . १. कालेन शम्भुः किल तावतापि, कलाश्चतुष्षष्टिमिता: प्रणिन्ये । द्वासप्तति प्राप्य समाः प्रबन्धाञ्छतं व्यदधादप्पयदीक्षितेन्द्रः ॥ सर्ग १॥ ७२ वर्ष की आयु के विषय में पूर्व पृष्ठ ५३६ की टि. १ में उद्धृत श्लोक भी देखें।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy