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________________ ५३२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास व्यक्तियों द्वारा खीस्ताब्द में लिखे गये काल को वैक्रमाब्द में बदल कर नीचे दे रहे हैं १. डा० वेल्वेल्कर-संवत् १६५७-१७०७ वि.।' २. डा० तालात्तीर-संवत् १५७५-१६२५ वि० ।' ३. डा० राव-संवत् १५७०-१६३५ वि० ।' ४. कीथ-विक्रम की १७ वीं शती में प्रादुर्भाव ।। ५. विण्टरनिटज-सं० १६२५ में प्रादुर्भाव । ६. डॉ० एस० पी० चतुर्वेदी-सं० १६०० में प्रादुर्भाव ।। ७-डा० पी० वी० काणे-सं० १५८०-१६३० वि०।" ये मत हम ने ब्र. धर्मवीर लिखित 'फिटसूत्राष्टाध्यायोः स्वरशास्त्राणां तुलनात्मकमध्ययनम्' शीर्षक शोध-प्रबन्ध (पृष्ठ ४०-४१, टाइप कापी) से उद्धृत किये हैं । हम इन लेखकों के मूलग्रन्थ नहीं देख सके । ___ कालनिर्णय का प्रयास-'लन्दन के इण्डिया आफिस के पुस्तकालय' १५ में विठ्ठलविरचित प्रक्रियाप्रसादनाम्नी टीका का एक हस्तलेख संगहीत है। उसके अन्त में लेखन काल सं० १५३६ लिखा है। यह प्रक्रियाप्रसाद की प्रतिलिपि का काल है। ग्रन्थ की रचना विठ्ठल ने इस से पूर्व की होगो । विट्ठल ने व्याकरण का अध्ययन शेष कृष्ण-सूनु वीरेश्वर अपरनाम रामेश्वर से किया था ।" विट्ठल के अध्ययन-काल में १. सिस्टम्स आफ संस्कृत ग्रामर, पृष्ठ ४६, ४७ । २. कर्नाटक हिस्ट्री रिव्यू, सन् १९३७ । ३. पृष्ठ ३४६, एज आफ भट्टोजि दीक्षित, सन् १९३९ । ४. हिस्ट्री आफ संस्कृत लिटरेचर, सन् १९२८, पृष्ठ ४३० । ५. हिस्ट्री माफ दी इण्डियन लिटरेचर, भाग ३. पृष्ठ ३६४ । ६. मैसूर आफ कान्फ्रेंस प्रेसिडिंग्स, सन् १९३५, पृष्ठ ७४२ । ७. हिस्ट्री आफ धर्मशास्त्र, खण्ड १, पृष्ठ ७१६-७१७ । ८. सूचीपत्र भाग २, पृष्ठ ६७ ग्रन्याङ्क ६१६ । ६. संवत् १५३६ वर्ष माघ वदी एकादशी रवी श्रीमदानन्दपुरस्थानोत्तमे प्राभ्यन्तरनागरजातीयपण्डितअनन्तसुतपण्डितनारायणादीनां पठनार्थं कुठारीव्य. ३० वगाहितसुतेन विश्वरूपेण लिखितम् । १०. 'तमर्भकं कृष्णगुरोर्नमामि रामेश्वराचार्यगुरु गुणाब्धिम् ।' प्रक्रियाकौमुदीप्रसादान्ते ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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