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अष्टाध्यायो के वृत्तिकार
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__ लक्ष्मीधर
भट्टोजि दीक्षित
रङ्गोजिभट्ट कौण्डमभट्ट
भानुजि दीक्षित वीरेश्वर
हरि दीक्षित प्रौढ़ मनोरमा का एक हस्तलेख भण्डारकर प्राच्यविद्याशोध-प्रतिष्ठान पूना के संग्रह में विद्यमान है उसके अन्त में लिखा है
इति श्रीवेदान्तप्रतिपादिताद्वैतसिद्धान्तस्थापनाचार्यलक्ष्मीधरपुत्रभट्टोजि ....."मनोरमायां कृदन्तप्रक्रिया समाप्ता।'
गुरु-पण्डितराज जगन्नानाथ-कृत प्रौढमनोरमाखण्डन से प्रतीत ५ होता है कि भट्टोजि दीक्षित ने नृसिंहपुत्र शेष कृष्ण से व्याकरणशास्त्र का अध्ययन किया था। भट्टोजि दीक्षित ने भी शब्दकौस्तुभ में प्रक्रियाप्रकाशकार शेष कृष्ण के लिये गुरु शब्द का व्यवहार किया है। तत्त्वकौस्तुभ में भट्टोजि दीक्षित ने अप्पय्य दीक्षित को नमस्कार किया है।
काल भट्टोजि दीक्षित जैसे प्रसिद्ध ग्रन्थकार का काल भी कितना विवादास्पद है, इस का परिज्ञान कराने के लिये हम कतिपय इतिहासविद् माने जाने वाले विद्वानों के मत नीचे लिखते हैं । हम इन
१. द्र०-व्याकरणविषयक सूचीपत्र (सन् १९३८) संख्या १३२, १५ ३३१/१८६५-१६०२ ।
२. 'इह केचित् (भट्टोजिदीक्षिताः) शेषवंशावतंसानां श्रीकृष्णपण्डितानां चिरायाचिंतयोः पादुकयोः प्रसादादासादितशब्दानुशासनास्तेषु च पारमेश्वरपदं प्रयातेषु तत्रभवद्भिल्लासितं प्रक्रियाप्रकाशं ...."दूषणः स्वनिर्मितायां मनोरमागमाकुल्यमकार्ष:।' चौखम्बा संस्कृत सीरिज काशी से सं० १९९१ में . पुस्तक प्राकार में प्रकाशित प्रौढमनोरमा भाग ३ के अन्त में मुद्रित, पृष्ठ १ ।।
३. तदेतत् सकलमभिधाय प्रक्रियाप्रकाशे गुरुचरणैरुक्तम् । पृष्ठ १४५ ।