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________________ अष्टाध्यायी के वृत्तिकार ५२७ कीर्ति रूपावतारकृत, उपाध्यायसर्वस्व, हट्टचन्द्र (८।२।२९) कैयट भाष्यटीका (प्रदीप), कविरहस्य (७।२।४३), मुरारि, अनर्घराघव (३३२।२६), कालिदास, भारवि भट्टि, माघ, श्रीहर्ष नैषधचरितकार, वल्लभाचार्य माघकाव्यटीकाकार (३।२।११२), क्रमदीश्वर (५।१। ७८), पद्मनाभ, मंजूषा (२४१४३)।' ___ इन में मञ्जूषा के अतिरिक्त कोई ग्रन्थ अथवा ग्रन्थकार विक्रम की १४ वीं शताब्दी से अर्वाचीन नहीं है। यह मञ्जूषा नागोजी भट्ट विरचित लघमञ्जषा नहीं है। नागोजी भट्ट का काल विक्रम की अठारहवीं शताब्दी का मध्य भाग है । भाषावृत्ति के सम्पादक ने शकाब्द १६३१ और १६३६ अर्थात् वि० सं० १७६६ और १७७१ के १० भाषावृत्त्यर्थविवति के दो हस्तलेखों का उल्लेख किया है। इससे स्पष्ट है कि भाषावृत्त्यर्थविवृति की रचना नागोजी भट्ट से पहले हुई है। हमारा विचार है कि सृष्टिधर विक्रम की १५ वीं शताब्दी का ग्रन्थकार है। २१. शरणदेव (सं० १२३० वि०) शरणदेव ने अष्टाध्यायी पर 'दुर्घट' नाम्नी वृत्ति लिखी है। यह व्याख्या अष्टाध्यायी के विशेष सूत्रों पर है । संस्कृतभाषा के जो पद व्याकरण से साधारणतया सिद्ध नहीं होते, उन पदों के साधत्वज्ञापन के लिए यह ग्रन्थ लिखा गया है । अतः एव ग्रन्थकार ने इसका अन्व- २० र्थनाम 'दुर्घटवृत्ति' रक्खा हैं। ग्रन्थकार ने मङ्गलश्लोक में 'सर्वज्ञ' अपरनाम बुद्ध को नमस्कार १. भाषावृत्ति की भूमिका पृष्ठ १० । २. भाषावृत्त्यर्थविवृत्ति में उद्धृत मेदिनीकोष का काल विकम की १४ वीं शताब्दी माना जाता है, यह ठीक नहीं है । उणादिवृत्तिकार उज्ज्वलदत्त २५ वि० सं० १२५० से पूर्ववर्ती है, यह हम 'उणादि के वत्तिकार' प्रकरण में लिखेंग । उज्ज्वजदत्त ने उणादिवृत्ति १३१०१, पृष्ठ ३६ पर मेदिनीकार को उद्धृत किया है। ___३. देखो-पूर्व पृष्ठ ४६८.४६६ । ४. भाषावृत्ति की भूमिका, पृष्ठ १० की टिप्पणी।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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