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________________ ५२६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास पुरुषोत्तमदेव की लघुवृत्ति के उद्धरण भाषावृत्ति के नाम से उदधृत करते हैं इस ग्रन्य में अनेक ऐसे प्राचीन ग्रन्थों के उद्धरण उपलब्ध होते हैं, जो सम्प्रति अप्राप्य हैं। पुरुषोत्तमदेव के काल आदि के विषय में हम पूर्व 'महाभाष्य के ५ टीकाकार' प्रकरण में लिख चुके हैं ।' दुर्घट-वृत्ति सर्वानन्द 'अमरकोषटीकासर्वस्व' में लिखता है'पुरुषोत्तमदेवेन गुर्विणीत्यस्य दुर्घटेऽसाधुत्वमुक्तम्' ।' इस पाठ से प्रतीत होता है कि पुरुषोत्तमदेव ने कोई 'दुर्घटवृत्ति' १० भी रची थी। शरणदेव ने अपनी दुर्घटवत्ति में 'गविणी' पद का साधुत्व दर्शाया है। सर्वानन्द ने टीकासवस्व वि० १२१६ में लिखा था। शरणदेवीय दुर्घटवृत्ति का रचना-काल वि० सं० १२३० है।' अतः सर्वानन्द के उद्धरण में 'पुरुषोत्तमदेवेन' पाठ अनवधानता-मूलक नहीं हो सकता । शरणदेव ने दुर्घटवृत्ति में पुरुषोत्तमदेव के नाम से १५ अनेक ऐसे पाठ उद्धृत किये हैं, जो भाषावृत्ति में उपलब्ध नहीं होते। शरणदेव ने उन पाठो को पुरुषोत्तमदेव की दुर्घटवृत्ति अथवा अन्य ग्रन्थों से उद्धृत किया होगा। भाषावृत्ति-व्याख्याता-सृष्टिधर सृष्टिधर चक्रवर्ती ने भाषावृत्ति की 'भाषावृत्त्यर्थविवृति' नाम्नी २० एक टीका लिखी है। यह व्याख्या बालकों के लिये उपयोगी है। लेखक ने कई स्थानों पर उपहासास्पद अशुद्धियां भी की हैं। चक्रवर्ती उपाधि से व्यक्त होता है कि सृष्टिधर वङ्ग प्रान्त का रहनेवाला था। ___ काल-सृष्टिधर ने ग्रन्थ ने प्राद्यन्त में अपना कोई परिचय नहीं दिया, और न ग्रन्थ के निर्माणकाल का उल्लेख किया है । अतः १५ सष्टिधर का निश्चित काल अजात है । सृष्टिधर ने भाषावत्यर्थविवृत्ति में निम्न ग्रन्थों और ग्रन्थकारों को उद्धृत किया है मेदिनी कोष, सरस्वतीकण्ठाभरण (८।२।१३), मैत्रेयरक्षित केशव, केशववृत्ति, उदात्तराघव, कातन्त्र परिशिष्ट (८।२।१६), धर्म. १. देखो - पूर्व पृष्ठ ४२८-४३१ । २. भाग २, पृष्ठ २७७ । ३० ३. देखो-आगे पृष्ठ ५२७,५२८,४८४ । ४. दुर्घटवृत्ति पृष्ठ १६,२७,७१।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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