________________
अष्टाध्यायी के वृत्तिकार
५२५ ८०० से ११५० के मध्य है, इतना ही स्थूल रूप से कहा जा सकता
१६. मैत्रेयरक्षित (सं० ११६५ वि० के लगभग) मैत्रेयरक्षित ने अष्टाध्यायी की एक 'दुर्घटवृत्ति' लिखी थी। वह ५ इस समय अनुपलब्ध है। उज्ज्वलदत्त ने अपनी उणादिवृत्ति में मैत्रेयरक्षित विरचित 'दुर्घटवृत्ति' के निम्न पाठ उद्धृत किये हैं
'श्रीयमित्यपि भवतीति दुर्घटे रक्षितः।'
‘कृदिकारादिति डोषि लक्ष्मीत्यपि भवतीति दुर्घटे रक्षितः' ।' मैत्रेयरक्षितविरचित 'दुर्घटवृत्ति' के इनके अतिरिक्त अन्य उद्धरण १० हमें उपलब्ध नहीं हुए।
शरणदेव ने भी एक 'दुर्घटवृत्ति' लिखी है। सर्वरक्षित ने उसका संक्षेप और परिष्कार किया है । रक्षित शब्द से सर्वरक्षित का ग्रहण हो सकता है, परन्तु सर्वरक्षित द्वारा परिष्कृत दुर्घटवृत्ति में उपर्युक्त पाठ उपलब्ध नहीं होते । उज्ज्वलदत्त ने अन्य जितने उद्धरण रक्षित १५ के नाम से उद्धृत किये हैं, वे सब मैत्रेयरक्षितविरचित ग्रन्थों के हैं। अतः उज्ज्वलदत्तोद्धृत दुर्घटवृत्ति के उपर्युक्त उद्धरण भी निश्चय ही मैत्रेयरक्षितविरचित दुर्घटवृत्ति से ही लिये गये हैं, यह स्पष्ट है। मैत्रेयरक्षितविरचित 'दुर्घटवृत्ति' के विषय में हमें इससे अधिक ज्ञान नहीं है। मैत्रेयरक्षित का आनुमानिक काल लगभग वि० संवत् ११६५ २० है, यह हम पूर्व पृष्ठ ४२४ पर लिख चुके हैं ।
. २०. पुरुषोत्तमदेव (सं० १००० वि० से पूर्व)
पुरुषोत्तमदेव ने अष्टाध्यायी की एक लघुत्ति रची है। काशिका वृत्ति से लघु होने से इसका नाम लघुवृत्ति है। इस नाम का उल्लेख २५ ग्रन्थकार ने स्वयं प्रादि में किया है।
' इसमें अष्टाध्यायी के केवल लौकिक सूत्रों की व्याख्या है। प्रत एव इसका दूसरा अन्वर्थ नाम 'भाषावृत्ति' भी है । प्रायः ग्रन्थकार १. द्र०-पृष्ठ ८०।
२. द्र०—पृष्ठ १४१।