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________________ ५२८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास किया है, तथा बौद्ध ग्रन्थों के अनेक प्रयोगों का साधुत्व दर्शाया है । इससे प्रतीत होता है कि शरणदेव बौद्धमतावलम्बी था। काल-शरणदेव ने ग्रन्थ के प्रारम्भ में 'दुर्घटवृत्ति' की रचना का समय शकाब्द १०६५ लिखा है । अर्थात् वि० सं० १२३० में यह ५ ग्रन्थ लिखा गया। प्रतिसंस्कर्ता-'दुर्घटवृत्ति के प्रारम्भ में लिखा है कि शरणदेव के कहने से श्रीसर्वरक्षित ने इस ग्रन्य का संक्षेप करके इसे प्रतिसंस्कृत किया। ग्रन्थ का वैशिष्टय-संस्कृत वाङ्मय के प्राचीन ग्रन्थों में प्रयुक्त १. शतशः दुःसाध्य प्रयोगों के साधुत्वनिदर्शन के लिये इस ग्रन्थ की रचना हुई है। प्राचीन काल में इस प्रकार के अनेक ग्रन्थ थे । मैत्रेयरक्षित और पुरुषोत्तमदेव विरचित दो दुघटवृत्तियों का वर्णन हम पूर्व कर चुके हैं। सम्प्रति केवल शरणदेवीय दुर्घटवृत्ति उपलब्ध होती है। यद्यपि शब्दकौस्तुभ आदि अर्वाचीन ग्रन्थों में कहीं-कहीं दुर्घटवृत्ति का १५ खण्डन उपलब्ध होता है, तथापि कृच्छसाध्य प्रयोगों के साधत्व दर्शाने के लिए इस ग्रन्थ में जिस शैली का आश्रय लिया है, उसका प्रायः अनुसरण अर्वाचीन ग्रन्थकार भी करते हैं । अतः 'गच्छतः स्खलनं क्वापि' न्याय से इसके वैशिष्टय में किञ्चन्मात्र न्यूनता नहीं पाती। इस ग्रन्थ में एक महान् वैशिष्टय और भी है। ग्रन्थकार ने इस २० ग्रन्थ में अनेक प्राचीन ग्रन्थों और ग्रन्थकारों के वचन उद्धत किये हैं। इन में अनेक ग्रन्थ और ग्रन्थकार ऐसे हैं, जिनका उल्लेख अन्यत्र नहीं मिलता। ग्रन्थकार ने ग्रन्थ-निर्माण का काल लिवकर महान् उपकार किया है। इसके द्वारा अनेक ग्रन्यों और ग्रन्थकारों के कालनिणय में महती सहायता मिलती है। १. नत्वा शरणदेवेन सर्वज्ञं ज्ञानहेतवे । वृहद्भदृजनाम्भोजकोशवीकासभास्वते ॥ २. शाकमहीपतिवत्सरमाने एकनभोनवपञ्चविमाने । दुर्घटवृत्तिरकारि मुदेव कण्ठविभूषणहारलतेव ।। ३. वाक्याच्छरणदेवस्य च्छायावग्रहपीडया । श्रीसर्वरक्षितेनैषा संक्षिप्य ३० प्रतिसंस्कृता॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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