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________________ संस्कृत भाषा की प्रवृत्ति, विकास और ह्रास १६ (क) भाषा का विकार प्रायः क्लिष्ट उच्चारण से सुगम उच्चारण की ओर होता है। (ख) भाषा का विकार प्रायः संश्लेषणात्मकता से विश्लेषणात्मकता की ओर होता है। यदि इन नियमों को ध्यान में रख कर संस्कृत और प्राकृत की ५ तुलना की जाय, तो प्रतीत होता है कि प्राकृत-भाषा की अपेक्षा संस्कृत भाषा का उच्चारण अधिक क्लिष्ट तथा संश्लेषणात्मक है, तथा प्राकृत का उच्चारण संस्कृत की अपेक्षा सरल और विश्लेषणात्मक है। अतः सरल उच्चारण और विश्लेषणात्मक प्राकृत-भाषा से क्लिष्ट उच्चारण और संश्लेषणात्मक संस्कृत-भाषा की उत्पत्ति नहीं १० हो सकती। हां, क्लिष्ट और संश्लेषणात्मक संस्कृत से सरल और विश्लेषणात्मक प्राकृत की उत्पत्ति हो सकती है। अतएव अतिप्राचीन ‘भरतमुनि' ने लिखा है-. .. एतदेव विपर्यस्तं संस्कारगुणजितम् । .. विज्ञेयं प्राकृतं पाठ्य नानावस्थान्तरात्सकम् ॥'... - शब्द-शास्त्र के प्रामाणिक आचार्य ‘भर्तृहरि' ने भी लिखा है दैवी वाग् व्यतिकीर्णेयमशक्तैरभिधातृभिः ।। इस विवेचना से स्पष्ट है कि संस्कृत-भाषा प्राकृत से प्राचीन है। और प्राकृत संस्कृत की विकृति है। संस्कृत नाम का कारण २० भारतीय इतिहास के अनुसार देववाणी का 'संस्कृत' नाम इस कारण हुआ प्राचीन-काल में देववाणी अव्याकृत अर्थात् प्रकृति-प्रत्यय आदि के विभाग से रहित थी। इसका उपदेश प्रतिपद पाठ द्वारा किया जाता था। इस प्रकार उसके ज्ञान में अत्यन्त परिश्रम तथा अत्यधिक २५ २. अ० १७ श्लोक २ । भरतनाट्यशास्त्र अतिप्राचीन आर्षकोल का ग्रन्थ है । लेखकप्रमाद से इसमें कहीं-कहीं प्राचीन टीकाओं के पाठ सम्मिलित हो गये हैं । इसे कृत्स्नतया अर्वाचीन मानना भूल है। २. वाक्यपदीय १।१॥५४॥ ३. 'बृहस्पतिरिन्द्राय दिव्यं वर्षसहस्रं प्रतिपदोक्तानां शब्दानां शब्दपारायणं प्रोवाच' । महाभाष्य अ० १, पा० १, प्रा० १ ।।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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