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. संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
भाषाविज्ञान सर्वथा मौन है, उसकी इसमें कोई गति नहीं । परन्तु भारतीय इतिहास स्पष्ट शब्दों में कहता है-'लोक में भाषा की प्रवृत्ति वेद से हुई है, और संस्कृत ही सब भाषाओं की आदि-जननी तथा आदिम भाषा है। आधुनिक भाषाशास्त्री अपने अधूरे काल्पनिक भाषाशास्त्र के अनुसार इस तथ्य को स्वीकार न करें, तो इसमें इतिहास का क्या दोष ? इतिहास विद्या है, और कल्पना कल्पना ही है ।
क्या संस्कृत प्राकृत से उत्पन्न हुई है ? प्राकृत भाषा के अनेक पक्षपाती देववाणी के लिये संस्कृत शब्द का व्यवहार देखकर कल्पना करते हैं कि संस्कृत-भाषा किसी प्राकृतभाषा से संस्कृत की हुई है। इसीलिये प्राकृत के प्रतिपक्ष में इसका नाम संस्कृत हुआ। यह कल्पना नितान्त अशुद्ध है। इसमें निम्न हेतु
१. संस्कृत से प्राग्भावी किसी प्राकृत-भाषा की सत्ता इतिहास से सिद्ध नहीं होती, जिस से संस्कृत की निष्पत्ति मानी जावे । १५ . २. प्राकृत-भाषा की महत्ता को स्वीकार करने वाले प्राचार्य
हेमचन्द्र सदश विद्वानों ने भी प्राकृत-भाषा की उत्पत्ति संस्कृत से मानी है।
३. भाषा का स्वभावतः विकास नहीं होता, विकार होता है । अतएव पूर्वाचार्यों ने प्राकृत का सामान्य 'अपभ्रंश' शब्द से व्यवहार २० किया है ।
४. भाषा-विकार के नियम सर्वसम्मत हैं
१. मनु० का पृष्ठ २ में उद्धृत 'सर्वेषां तु स नामानि......' वचन, 'दैवी वाग् व्यतिकीर्णयमशक्तैरभिधातृभिः' । वाक्यपदीय १११५४॥ वेदभाषा
अन्य सब भाषाओं का कारण है' । सत्यार्थप्रकाश, सप्तम समुल्लास 'रामलाल २५ कपूर ट्रस्ट' का आ० स० शताब्दी संस्करण २, पृष्ठ ३१५ पं० १२ । तथा पूना-प्रवचन, पांचवां व्याख्यान ।
२. 'प्रकृतिः संस्कृतम् । तत्र भवं तत आगतं वा प्राकृतम्' । हैम प्राकृतव्याकरण की स्वोपज्ञ-व्याख्या १११११॥
- तुलना करो- 'प्रकृतौ भवं प्राकृतम्, साधूनां शब्दानां...' । वाक्यपदीय ३० स्वोपज्ञवृति १२१५५, पृष्ठ १३७ रामलालकपूर ट्रस्ट, लाहौर संस्करण । : ...
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