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५२२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
१६. श्रुतपाल (सं० ८७० वि० से पूर्व) श्रुतपाल के व्याकरण-विषयक अनेक मत भाषावृत्ति, ललितपरिभाषा, कातन्त्रवृत्तिटीका, और जैन शाकटायन की अमोघावृत्ति में उपलब्ध होते हैं। यह हम पूर्व लिख चुके हैं। उनके अवलोकन से विदित होता है कि श्रुतपाल ने पाणिनीय शास्त्र पर कोई वृत्ति लिखी थी।
काल
श्रुतपाल के उद्धरण जिन ग्रन्थों में उद्धत हुए हैं, उनमें अमोघावृत्ति सबसे प्राचीन है । अमोघाकार पाल्यकीति का काल सं० ८७११० ८२४ वि० के आसपास है । यह हम आगे 'प्राचार्य पाणिनि से अर्वा
चीन वैयाकरण' नामक १७ वें अध्याय में लिखेंगे।
१७. केशव (सं० ११६५ वि० से पूर्व) केशव नाम के किसी वैयाकरण ने अष्टाध्यायी की एक वृत्ति १५ लिखी थी। केशववृत्ति के अनेक उद्धरण व्याकरण-ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं। पुरुषोत्तमदेव भाषावृत्ति में लिखता है
'पृषोदरादित्वादिकारलोपे एकदेशविकारद्वारेण पर्षच्छब्दादपि वलजिति केशवः ।
'केशववृत्तौ तु विकल्प उक्तः-हे प्रान्, हे प्राण वा' ।'' २० भाषावृत्ति का व्याख्याता सृष्टिधराचार्य केशववृत्ति का एक श्लोक उद्धृत करता है
अपास्पाः पदमध्येऽपि न चैकस्मिन् पुना रविः । तस्माद्रोरीति सूत्रेऽस्मिन् पदस्येति न बध्यते ॥
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१, देखो-पूर्व पृष्ठ ४३०, टि० ४, ५, ६ तथा पृ० ४३१ की टि०१। २. ५।२।११२।।
३. ८४॥२०॥ ४. भाषावृत्ति, पृष्ठ ५४४ की टिप्पणी।