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________________ Ac अष्टाध्यायी के वृत्तिकार ५२१ भट्ट जयन्त नैयायिकों में जरन्नयायिक के नाम से प्रसिद्ध है।' यह व्याकरण, साहित्य, न्याय, और मीमांसाशास्त्र' का महापण्डित था। इसके पितामह कल्याणस्वामी ने ग्राम की कामना से सांग्रहणीष्टि की थी। उसके अनन्तर उन्हें 'गौरमूलक' ग्राम की प्राप्ति हुई थी।' काल जयन्त का प्रपितामह शक्तिस्वाभी कश्मीर के महाराजा मुक्तापीड का मन्त्री था। मुक्तापीड का काल विक्रम की आठवीं शताब्दी का उत्तरार्ध है। अतः भट्ट जयन्त का काल किक्रम की नवम शताब्दी का पूर्वार्ध होना चाहिये। अन्य ग्रन्थ न्यायमञ्जरी-यह न्यायदर्शन के विशेष सूत्रों की विस्तृत टीका है । इसका लेख अत्यन्त प्रौढ और रचनाशैली अत्यन्त परिष्कृत तथा प्राञ्जल हैं । न्याय के ग्रन्थों में इसका प्रमुख स्थान है। न्यायकलिका-गुणरत्न ने 'षड्दर्शन-समुच्चय' की वृत्ति में इस ग्रन्थ का उल्लेख किया है । यह ग्रन्थ न्यायशास्त्र-विषयक है। १५ सरस्वती भवन काशी से प्रकाशित हो चुका है। पल्लव-डा० वी० राघवन् एम. ए. ने लिखा कि श्रीदेव ने स्याद्वादरत्नाकर की 'प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार' टीका में जयन्तविरचित 'पल्लव' ग्रन्थ के कई उद्धरण दिये हैं । डा० वी० राघवन् के मतानुसार पल्लव न्यायशास्त्र का कारिकामय ग्रन्थ था। २० मजीजनत् । व्यक्ता कवित्ववक्तृत्वफला यत्र सरस्वती ॥ वृत्तिकार इति व्यक्त द्वितीयं नाम बिभ्रतः । वेदवेदाङ्गविदुषः सर्वशास्त्रार्थवादिनः ॥ जयन्तनाम्नः सुधियः साधुसाहित्यतत्त्ववित् । सूनुः समभवत्तस्मादभिनन्द इति श्रुतः ॥ १. न्यायचिन्तामणि, उपमान खण्ड, पृष्ठ ६१, कलकत्ता सोसाइटी सं। २५ २. वेदप्रामाण्यसिद्धयर्थमित्त्यमेताः कथाः कृताः । न तु मीमांसकख्याति प्राप्तोऽस्मीत्यभिमानतः ॥ न्यायमञ्जरी, पृष्ठ २६०। ___३. तथा ह्यस्मत्पितामह एव ग्रामकामः सांग्रहणीं कृतवान्, स इष्टिसमाप्तिसमनन्तरमेव गौरमूलकं ग्राममवाप । न्यायमञ्जरी, पृष्ठ २७४ । ४. स्याद्वादरत्नाकर भाग १, पृष्ठ ६४, ३०२, तथा भाग ४, पृष्ठ ७८०। देखो-प्रेमी अभिनन्दनग्रन्थ में डा० राधवन् का लेख पृष्ठ ४३२, ४३३ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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