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अष्टाध्यायी के वृत्तिकार
५१५ ६५०-७०० वि० तक है, यह हम पूर्व लिख चुके हैं । चतुर्थ श्रीधरसेन का राज्यकाल सं० ७०२-७०५ तक है । अतः भागवृत्ति का निर्माण चतुर्थ श्रीधरसेन की प्राज्ञा से हुप्रा होगा। ___ न्यास के सम्मादक ने भागवृत्ति का काल सन् ६२५ ई० (सं० ६८२ वि०), और काशिका का सन् ६५० ई० (=सं० ७०७ वि०) ५ माना है,' अर्थात् भागवृत्ति का निर्माण काशिका से पूर्व स्वीकार किया है, वह ठीक नहीं है। इसी प्रकार श्री पं० गुरुपद हालदार ने भागवृत्ति की रचना नवम शताब्दी में मानी है, वह भी अशुद्ध है। वस्तुतः भागवृत्ति की रचना वि० सं० ७०२-७०५ के मध्य हुई है, यह पूर्व विवेचना से स्पष्ट है ।।
___ काशिका और भागवृत्ति हम पूर्व लिख चुके हैं कि 'भागवृत्ति' में काशिका का स्थानस्थान पर खण्डन उपलब्ध होता है। दोनों वृत्तियों में परस्पर महान् अन्तर है । इस का प्रधान कारण यह है कि काशिकाकार महाभाष्य को एकान्त प्रमाण न मानकर अनेक स्थानों में प्राचीन वृत्तिकारों के १५ मतानुसार व्याख्या करता है। अतः उसकी वृत्ति में अनेक स्थानों में महाभाष्य से विरोध उपलब्ध होता है। भागवृत्तिकार महाभाष्य को पूर्णतया प्रमाण मानता है। इस कारण वह वैयाकरण-सम्प्रदाय में अप्रसिद्ध शब्दों की कल्पना करने से भी नहीं चूकता।'
__ भागवृत्ति के उद्धरण भागवृत्ति के १९८ उद्धरण अभी तक हमें ३७ ग्रन्थों में उपलब्ध हुए हैं । इन में २४ ग्रन्थ मुद्रित, ६ ग्रन्थ अमुद्रित, तथा ४ लेखसंग्रह, हस्तलेख, सूचीपत्रादि हैं । वे इस प्रकार हैं
मुद्रित ग्रन्थ १. महाभाष्यप्रदीप-कैयट २. महाभाष्यप्रदीपोद्योत-नागेश २५
१. न्यास-भूमिका, पृष्ठ २६ । • २. 'लोलूय+सन्' इस अवस्था में भागवृत्ति 'लुलोलूयिषति' रूप मानता है। वह लिखता है- 'प्रनभ्यासग्रहणस्य न तु किञ्चित् प्रयोजनमुक्तम् । तत. श्चोत्तरार्थमपि तन्न भवतीति भाष्यकारस्याभिप्रायो लक्ष्यते। तेनात्र भवितव्यं द्विवंचनेन । पदमञ्जरी ६।१।६, पृष्ठ ४२६ पर उद्धृत ।
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