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________________ ५१४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास 'भागवृत्तिभर्तृहरिणा श्रीधरसेननरेन्द्रादिष्टा विरचिता' ।' ___ इस उद्धरण से विदित होता है कि वलभी के राजा श्रीधरसेन की आज्ञा से भर्तृहरि ने भागवृत्ति की रचना की थी। 'कातन्त्रपरिशिष्ट' का रचयिता श्रीपतिदत्त सन्धिसूत्र १४२ पर ५ लिखता है 'तथा च भागवत्तिकृता विमलमतिनाप्येवं निपातितः।' इस से प्रतीत होता है कि भागवृत्ति के रचयिता का नाम 'विमलमति' था। पं० गुरुपद हालदार ने सृष्टिघर के वचन को अप्रामाणिक माना १० है । परन्तु हमारा विचार है कि सृष्टिधराचार्य और श्रीपतिदत्त दोनों के लेख ठीक हैं, इन में परस्पर विरोध नहीं है । यथा कविसमाज में अनेक कवियों का कालिदास औपाधिक नाम है, उसी प्रकार वैयाकरणनिकाय में अनेक उत्कृष्ट वैयाकरणों का भर्तृहरि औपाधिक नाम रहा है। विमलमति ग्रन्थकार का मुख्य नाम है, और १५ भर्तृहरि उस की औपाधिक संज्ञा है । भटि के कर्ता का भर्तृहरि औपाधिक नाम था। यह हम पूर्व पृष्ठ ३६६ पर लिख चुके हैं । विमलमति बौद्ध सम्प्रदाय का प्रसिद्ध व्यक्ति है। एस. पी. भट्टाचार्य का विचार है कि भागवत्ति का रचयिता सम्भवतः इन्दु था। हमारे मत में यह विचार चिन्त्य है । भागवृत्ति का काल सृष्टिधराचार्य ने लिखा है कि 'भागवृत्ति' की रचना महाराज श्रीधरसेन की आज्ञा से हुई थी । वलभी के राजकुल में श्रीधरसेन नाम के चार राजा हुए हैं, जिनका राज्यकाल सं० ५५७-७०५ वि० तक माना जाता है । इस ‘भागवृत्ति' में स्थान-स्थान पर काशिका का खण्डन उपलब्ध होता है । इस से स्पष्ट है कि 'भागवृत्ति' की रचना काशिका के अनन्तर हुई है । काशिका का निर्माणकाल लगभग सं० १. भाषावृत्त्यर्थविवृति ८११६७॥ २. पाल इण्डिया प्रोरियन्टल कान्फ्रेंस १९४३॥१६४४ (बनारस) में भागवृत्ति-विषयक लेख। ३. भागवृत्ति-संकलन ५॥१३२५॥२॥१३॥ ६।३।१४।।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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