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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र झा इतिहास
उसमें यदि यथावत् गति न हो, तो ग्रन्थ कभी शुद्ध सम्पादित नहीं हो सकता । इसी प्रकार पाश्चात्त्य सम्पादन कला से अनभिज्ञ तद्विषयक विद्वान् भी यथावत् सम्पादन नहीं कर सकता । सम्पादन- कार्य के लिये दोनों बातों का सामञ्जस्य होना चाहिये ।
काशिका के पाठशोधन का प्रथम प्रयास - श्री बहिन प्रज्ञाकुमारी प्राचार्या 'जिज्ञासु स्मारक पाणिनि कन्या महाविद्यालय, वाराणसी ने 'विद्यावारिधि (पीएच डी ) की उपाधि के लिए 'काशिकायाः समीक्षात्मकम् श्रध्ययनम्' शोध-प्रबन्ध में काशिकावृत्ति के बहुतर पपाठों के संशोधन करने का प्रथमवार स्तुत्य प्रयास किया है। १० यह शोध प्रबन्ध अभी तक अप्रकाशित है ।
काशिकावृत्ति पर शोध-प्रबन्ध
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काशिकावृत्ति पर अनेक व्यक्तियों ने शोध-प्रबन्ध लिखे हैं । कुछ का काशिका से सीधा सम्बन्ध है, कुछ परम्परा से । इन में जो हमें उपलब्ध हुए हैं वे इस प्रकार हैं
१ - काशिकायाः समीक्षात्मकमध्ययनम् - डा० श्री प्रज्ञाकुमारी लेखनकाल सन् १६६६, प्रमुद्रित ।
२ - काशिका का अलोचनात्मक अध्ययन-डा० रघुवीरा वेदालंकार । सन् १९७७, मुद्रित ।
३ - काशिकावृत्तिवैयाकरणसिद्धान्तकौमुदयोः तुलनात्मकमध्य२० यनम् - डा० महेशदत्त शर्मा | सन् १९७४ मुद्रित ।
४ - न्यास पर्यालोचन - डा० भीमसेन शास्त्री । सन् १६७६, मुद्रित ।
५ - पदमञ्जर्या पर्यालोचनम् - तीर्थराज त्रिपाठी । १९८१ मुद्रित । ६ - चन्द्रवृत्तेः समालोचनात्मकमध्ययनम् - डा० हर्षनाथ मिश्र । २५ सन् १६७४, मुद्रित ।
इनमें से प्रथम तीन ग्रन्थों का काशिका के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध हैं । संख्या ४-५ का काशिका की व्याख्या न्यास और पदमञ्जरी के साथ, तथा संख्या ६ का परोक्षरूप से सम्बन्ध है ।