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________________ अष्टाध्यायो के वत्तिकार ५११ भट्टोजि दीक्षित आदि ने जहां अपने ग्रन्थों में नये-नये उदाहरण देकर प्राचोन ऐतिहासिक निर्देशों को लोप कर दिया, वहां साथ ही साम्प्रदायिक उदाहरणों का बाहुल्येन निर्देश कर के पाणिनीय शास्त्र को भी साम्प्रदायिक रूप में प्रस्तुत करने की चेष्टा की। काशिका का पाठ ___ काशिका के जितने संस्करण इस समय उपलब्ध है, वे सब महा अशुद्ध हैं । इतने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के प्रामाणिक परिशुद्ध संस्करण का प्रकाशित न होना अत्यन्त दुख की बात है।' काशिका में पाठों की . अव्यवस्था प्राचीन काल से ही रही है । न्यासकार काशिका ११११५ की व्याख्या में लिखता है*." "अन् तूलरसूत्रे कणिताश्वो रणिताश्व इत्यनन्तरमनेन ग्रन्थेन भवितव्यम्, इह तु दुविन्यस्तकाकपदजनितभ्रान्तिभिः कुलेखकैलिखितमिति वर्णयन्ति'।' न्यास और पदमञ्जरी में काशिका के अनेक पाठान्तर उद्धृत किये हैं। काशिका का इस समय जो पाठ उपलब्ध होता है, वह १५ अत्यन्त भ्रष्ट है। ६।१।१७४ के प्रत्युदाहरण का पाठ इस प्रकार छपा है'हल्पूर्वादिति किम् बहुनावा ब्राह्मण्या' । इसका शुद्ध पाठ 'बाहुतितवा ब्राह्मण्या' है । काशिका में ऐसे पाठ भरे पड़े हैं । इस वृत्ति के महत्त्व को देखते हुए इसके शुद्ध संस्करण २० की महती आवश्यकता है। नवीन संस्करण-'उस्मानिया विश्वविद्यालय' हैदराबाद की 'संस्कृत परिषद्' द्वारा अनेक हस्तलेखों के आधार पर काशिका का .एक नया संस्करण छपा है। यह अपेक्षाकृत पूर्व संस्करणों से उत्तम है । तथापि सम्पादकों के वैयाकरण न होने से इस में भी बहुत स्थानों २५ पर अपपाठ विद्यमान हैं। जिस विषय के ग्रन्थ का सम्पादन करना हो, १. अभी कुछ वर्ष पूर्व 'उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद' से इसका एक नया संस्करण प्रकाशित हुआ है। उसके सम्बन्ध में आगे देखें । २. न्यास भाग १, पाठ ४६ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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