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५१० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
काशिका-वृत्ति का महत्त्व काशिका-वृत्ति व्याकरणशास्त्र का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इस में निम्न विशेषताएं हैं
१–काशिका से प्राचीन कुणि आदि वृत्तियों में गणपाठ नहीं ५ था।' इसमें गणपाठ का यथास्थान सन्निवेश है।
२-काशिका की प्राचीन विलुप्त वृत्तियों और ग्रन्थकारों के अनेक मत इस ग्रन्थ में उद्धृत हैं, जिनका अन्यत्र उल्लेख नहीं मिलता।
३-इसमें अनेक सत्रों की व्याख्या प्राचीन वत्तियों के आधार १० पर लिखी है । अतः उनसे प्राचीन वृत्तियों के सूत्रार्थ जानने में पर्याप्त
सहायता मिलती है। ___ काशिका में जहां-जहां महाभाष्य से विरोध है, वहां-वहां काशिकाकार का लेख प्रायः प्राचीन वृत्तियों के अनुसार है । आधुनिक
वैयाकरण महाभाष्यविरुद्ध होने से उन्हें हेय समझते हैं, यह उनकी १५ महती भूल है।
४-काशिकान्तर्गत उदारण-प्रत्युदाहरण प्रायः प्राचीन वृत्तियों के अनुसार हैं। जिन से अनेक प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों का ज्ञान होता है।
५–यह ग्रन्थ साम्प्रदायिक प्रभाव से भी मुक्त है । सारे ग्रन्थ में २० केवल २-३ उदाहरण ही ऐसे है, जिन्हें कथंचित् साम्प्रदायिक कहा
जा सकता है।
१. वृत्त्यन्तरेषु सूत्राण्येव व्याख्यायन्ते .....वृत्त्यन्तरेषु तु गणपाठ एव नास्ति । पदमञ्जरी भाग १, पृष्ठ ४।।
२. देखो-ओरियण्टल कालेज मेगजीन लाहौर नवम्बर १९३६ में हमारा महाभाष्य से प्राचीन अष्टाध्यायी की सूत्रवृत्तियों का स्वरूप' लेख ।
३, अपचितपरिमाणः शृगाल: किखी । अप्रसिद्धोदाहरणं चिरन्तन प्रयोगात् । पदमञ्जरी २।१।५।। मुद्रित काशिका में सदृशं सख्या ससखि' पाठ है। वहां 'सदृशं किख्या सकिखि' पाठ होना चाहिए । पुनः लिखा है-अवत. प्तेनकुलस्थितं तवैतदिति चिरन्तनप्रयोगः, सस्यार्थमाह' पदमञ्जरी २१॥४७॥