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अष्टाध्यायो के वृत्तिकार . ५०६ संमिश्रित वृत्तियों का खण्डन उपलब्ध होता है ।' अतः यह सम्मिश्रण भागवृत्ति बनने (वि० सं० ७००) से पूर्व हो चुका था, यह निश्चित है।
काशिका का रचना-स्थान काशिका के व्याख्याता हरदत्त मिश्र और रामदेव मिश्र ने लिखा ५
'काशिका देशतोऽभिधानम्, काशीषु भवा' ।'
अर्थात् 'काशिका वृत्ति' की रचना काशी में हुई थी। उज्जवल दत्त और भाषावृत्त्यर्थविवृत्तिकार सृष्टिधर का भी यही मत है ।
काशिका के नामान्तर काशिका के लिये एकवृत्ति और प्राचीनवृत्ति शब्दों का व्यवहार मिलता है ।
एकवृत्ति नाम का कारण-काशिका की प्रतिद्वन्द्विनी 'भागवृत्ति' नाम की एक वृत्ति थी (इसका अनुपद ही वर्णन किया जायगा)। उस में पाणिनीय सूत्रों को लौकिक और वैदिक दो विभागों में बांट १५ कर भागशः व्याख्या की गई थी । काशिका में पाणिनीय क्रमानुसार लौकिक वैदिक सूत्रों की यथास्थान व्याख्या की गई है। इसलिए भागवृत्ति की प्रतिद्वन्द्विता में 'काशिका' के लिए एकवृत्ति शब्द का व्यवहार होता है।
१. देखो-हमारा 'भागवृत्ति संकलन' पृष्ठ २१, २३, २४ इत्यादि, २० लाहौर संस्करण।
२, पदमञ्जरी भाग १, पृष्ठ ४ । तथा वृत्तिप्रदीप के प्रारम्भ में । ३. उणादिवृत्ति पृष्ठ १७३ ॥ ४. भाषावृत्तिटीका ८।२।६७॥ ५. अनार्ष इत्येकवृत्तावुपयुक्तम् । भाषावृत्ति १।१।१६॥
६. गोयीचन्द्र लिखता है- प्रत एव भाषाभागे भागवृत्तिकृत्..." शे २५ इति सूत्र छन्दो भागः । विशेष द्र०-ओरियण्टल कान्फ्रेंस वाराणसी सन् १९४३-४४ के लेख-संग्रह में एस. पी. भट्टाचार्य का लेख।
७. एकवृत्तौ साधारणवृत्ती वैदिक लौकिके च विवरणे इत्यर्थः । एकवृत्ताविति काशिकायां वृत्तावित्यर्थः । सृष्टिघर । भाषावृत्ति पृष्ठ ५, टि० ८ ।