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as पञ्चतन्त्र में जयादित्य और वामन के द्वारा कही गई सूक्तिमुक्तावलियों की ओर संकेत है। 'सुभाषितावलि' में जयादित्य और वामन दोनों के सुभाषित संगृहीत हैं । अतः इस अंश में कन्नड पञ्चतन्त्रकार का लेख निश्चय ही प्रामाणिक है । इस आधार पर उस के द्वितीय अंश की प्रामाणिकता में सन्देह करना स्वयं सन्देहास्पद १०% हो जाता है ।
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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
काल भी स्वीकार कर लिया जाय, तो भी 'काशिका' का काल विक्र माब्द की चतुर्थ शती का मध्य मानना होगा । यदि कन्नड पञ्चतन्त्र का लेखक प्रमाणान्तर से और परिपुष्ट हो जाए, तो इत्सिंग आदि चीनी यात्रियों के काले तथा वर्णन में भारी संशोधन करना होगा ।
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काशिका और शिशुपालवध
माघ - विरचित 'शिशुपालवध' में एक श्लोक हैC
"अनुत्सूत्रपदेन्यासा सद्वृत्तिः सन्निबन्धना । शब्दविद्येव नो भाति राजनीतिरपस्पशा ॥'
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इस श्लोक में 'सद्वृत्ति' पद से काशिका की ओर संकेत है, ऐसा कुछ विद्वानों का मत है । शिशुपालवध के टीकाकार 'सद्वृत्ति' और 'न्यास' पद से काशिका और जिनेन्द्रबुद्धि विरचित न्यास का संकेत मानते हैं । उसी के आधार पर न्यास के संपादक श्रीशचन्द्र भट्टाचार्य ने माघ का काल ८०० ई० ( = ८५७ वि०) माना है, वह प्रयुक्त २० है । माघ कवि के पितामह के आश्रयदाता महाराज वर्मलात का सं० ६८२ ( = सन् ६२५) का एक शिलालेख मिला है । " सीरदेव के लेखानुसार भागवृत्तिकार ने माघ के कुछ प्रयोगों को अपशब्द माना है । 'भागवृत्ति की रचना सं० ७०२-७०५ के मध्य हुई है, यह प्रायः
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२. देखो - न्यास की भूमिका, पृष्ठ २६ ।
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१. २।११२ ॥ ३. देखो – वसन्तगढ़ का शिलालेख - 'द्विरशीत्यधिके काले षष्णां वर्षशतोत्तरे जगन्मातुरिदं स्थानं स्थापितं गोष्ठपुरं गवैः ॥ ११ ॥
४ श्रत एव तत्रैव सूत्रे ( १ १/२७ ) भागवृत्तिः - पुरातनमुनेर्मु निताम् ( किरात ६ १६ ) इति पुरातनर्नदी: ( माघ १२ । ६० ) इति च प्रमादपाठावेतो गतानुगतिकतया कवयः प्रयुञ्जते, न तेषां लक्षणं चक्षुः । परिभाषावृत्ति, पृष्ठ
१३७ ।