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'अष्टाध्यायी के बुत्तिकार
५०७ निश्चित है । अतः शिशुपालवध को समय सं० ६८२-७०० वि० के मध्य मानना होगा । धातुवृत्तिकार सार्यण के मतानुसार काशिका की रचना शिशुपाल-वध से उत्तरकालीन है। अतः उसके सद्वृत्ति शब्द का संकेत काशिका की ओर नहीं है। ... ... - प्राचीनकाल में 'न्यास' नाम के अनेक ग्रन्थ विद्यमान थे । भर्तृ- ५ 'हरिविर चित 'महाभाष्यदीपिका' में भी एक न्यास उद्धृत है । अतः माघ ने किस न्यास की ओर संकेत किया है, यह अज्ञात है।
जयादित्य और वामन की सम्पूर्ण वृत्तियां जिनेन्द्रबुद्धिविरचित 'काशिकाविरणपञ्चिका' जयादित्य और वामन विरचित सम्मिलित वृत्तियों पर है । परन्तु न्यास में जयादित्य १० और वामन के कई ऐसे पाठ उद्धृत हैं, जिनसे विदित होता है कि जयादित्य और वामन दोनों ने सम्पूर्ण अष्टाध्यायी पर पृथक्पृथक् वृत्तियां रची थीं। न्यास के जिन पाठों से ऐसी प्रतीति होती है, वे अधोलिखित हैं
१. 'ग्लाजिस्थश्च (अष्टा० ३।२।१३९) इत्यत्र जयादित्यवृत्तौ १५ ग्रन्थ "। श्रय कः किति (अष्टा० ७।२।११) इत्यत्रापि जयादित्यवृत्तौ . ग्रन्थः-कारोऽप्यत्र चर्वभूतो निर्दिश्यते भूष्णुरित्यत्र यथा स्यादिति । वामनस्य त्वेतत् सर्वमनभिमतम् । तथाहि तस्यैव सूत्रस्य (अष्टा० ७।१।११) तद्विरचितायां वृत्तौ ग्रन्थः केचिदत्र। ___ इन उद्धरण में न्यासकार ने अष्टाध्यायी ७१२।११ सूत्र की जया- . दित्य और वामन विरचित दोनों वृत्तियों का पाठ उद्धृत किया है। ध्यान रहे कि जिनेन्द्रबुद्धि ने सप्तमाध्याय का न्यास वामनवृत्ति पर
रचा है।
:: न्यासकार ३।११३३ में पुनः लिखता है
१. 'क्रमादमु नारद इत्य बोधि सः' इति माघे सकर्मकत्वं वृत्तिकारादीनाम- २५ नभिमतमेव । धातुवृत्ति, पृष्ठ'२६७ काशी संस्करण। .....
२. महाभाष्यदीपिका उद्धरणाङ्क ३६, देखो-पूर्व पृष्ठ ४१५ । --- ३. तुलना करो-न्यास ३।२।१३६॥ ४. न्यास १११॥५॥ पृष्ठ ४७, ४८'