________________
५०५
अष्टाध्यायी के वृत्तिकार वामन इन सब से भिन्न व्यक्ति है । उस का काल विक्रम की सप्तम शताब्दी है।
कन्नड पञ्चतन्त्र और जयादित्य वामन ५–कन्नडभाषा में दुर्गसिंह कृत एक पञ्चतन्त्र है । उसका मूल वसुभाग भट्ट का पाठ है। उसमें निम्न पाठ है
'गुप्तवंश वसुधाधीशावली राजधानीयन् उज्जैनि-यन्नैदि ....."गुप्तान्वय जलधर मार्ग यभस्ति मालियु, वामन-जयादित्यप्रमुख मुखकमलविनिर्गत सूक्तिमुक्तावली मणी-कुण्डल-मण्डितकर्णन ......"विक्रमाङ्कनं साहसाङ्कम्' ।'
इस पाठ में वामन ने जयादित्य को गुप्तवंशीय विक्रम साहसाङ्क १० का समकालिक कहा है।
ए. वेङ्कट सुभिया के अनुसार यह दुर्गसिंह ईसा की ११ वों शती का' है । अखिल भारतीय प्राच्यविद्या परिषद् (पाल इण्डिया ओरियण्टल कान्फ्रेंस) नागपुर, पृष्ठ १५१ पर के. टी. पाण्डुरंग का मल्लिनाथ कृत टीका पर एक लेख छपा है। इनका मत है कि कन्नड १५ पञ्चतन्त्र का कर्ता दुर्गसिंह 'कातन्त्र वृत्तिकार' दुर्गसिह ही है।'
हमारे विचार में यह दुर्गसिंह 'कातन्त्रवृत्तिकार' नहीं हो सकता क्योंकि वह काशिकाकार से प्राचीन है, यह हम कातन्त्र के प्रकरण में सप्रमाण लिखेंगे । हां, यह 'कातन्त्र-दुर्गवृत्ति' का टीकाकार द्वितीय दुर्गसिंह हो सकता है । कातन्त्र पर लिखने वाले दो दुर्गसिंह पृथक्- २० पृथक् हैं । इसका भी हम उसी प्रकरण में प्रतिपादन करेंगे । __ कन्नड पञ्चतन्त्र में जयादित्य और वामन को गुप्तवंशीय विक्रमाङ्क साहसांङ्क का समकालिक कहा है। यह गुप्तवंशीय चन्द्रगुप्त द्वितीय है । पाश्चात्त्य मतानुसार इस का काल वि० सं० ४६७४७० तक माना जाता है। यही विक्रम संवत् का प्रवर्तक है। यदि २५ दुर्जनसन्तोष न्यास से चन्द्रगुप्त द्वितीय का पाश्चात्त्य मतानुसारी
१. पाल इडिण्या अोरि० कान्फ्रेंस, मैसूर, दिसम्बर १६३५, मुद्रण सन् १९३७ ।
२. पं० भगवद्दत्त कृत भारतवर्ष का बृहद् इतिहास, भाग २, पृष्ठ ३२४ के आधार पर।