________________
५०४
संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
'अलङ्कारशास्त्र' का रचयिता है, और तीसरा 'लिङ्गानुशासन' का निर्माता है। ये सब पृथक्-पृथक व्यक्ति हैं। काशिका का रचयिता वामन इन सब से भिन्न व्यक्ति है । इसमें निम्न हेतु हैं
भाषावृत्तिकार पुरुषोत्तदेव ने काशिका मौर भागवृत्ति के अनेक पाठ साथ-साथ उधत किये हैं। उन की तुलना से व्यक्त होता है कि भागवृत्तिकार स्थान-स्थान पर काशिका का खण्डन करता है । यथा
१. साहाय्यमित्यपि ब्राह्मणादित्वादिति जयादित्यः, नेति भागवृत्तिः' ।'
२. 'कथमद्यश्वीनो वियोगः ? विजायत इत्यस्यानुवृत्तेरिति १. जयादित्यः । स्त्रीलिङ्गनिर्देशादुपमानस्याप्यसंभवान्नैतदिति भागवृत्तिः ' ।
३. 'इह समानस्येति योगविभागः, तेन सपक्षसधर्मसजातीयाः सिद्धयन्तीति वामनवृत्तिः । अनार्षोऽयं योगविभागः, तथााव्ययानाम
नेकार्थत्वात् सदृशार्थस्य सहशब्दस्यते प्रयोगाः कथंनाम समानपक्ष १५ इत्यादयोऽपि भवन्तीति भागवृत्तिः' ।'
४. दृशिग्रहणादिह पूरुषो नारक इत्यादावन्ययं दीर्घ इति वामनवृत्तिः। अनेनोत्तरपदे विधानादप्राप्तिरिति पूरुषादयो दीर्घोपदेशा एव संज्ञाशब्दा इति भागवृत्तिः । ___ इन में प्रथम दो उद्धरणों में जयादित्य का, और तृतीय चतुर्थ में वामनवृत्ति का खण्डन है। भागवृत्ति का काल विक्रम संवत् ७०२७०५ तक है. यह हम अनुपद लिखेंगे । तनुसार वामन का काल वि० सं० ७०० से पूर्व मानना होगा। 'अलङ्कारशास्त्र' और 'लिङ्गानुशासन' के प्रणेता वामन का काल विक्रम की नवम शताब्दी ।
'विश्रान्तविद्याधर' का कर्ता वामन विक्रम संवत् ३७५ अथवा ५७३ २५ से पूर्वभावी है। यह हम आगे सप्रमाण लिखेंगे। प्रता काशिकाकार
२०
१. भाषावृत्ति, पृष्ठ ३१०। २. भाषावृत्ति, पृष्ठ ३१४ । ३. भाषावृत्ति, पृष्ठ ४२०। ४. भाषावृत्ति, पृष्ठ ४२७ ।
५. कन्हैयालाल पोद्दार कृत 'संस्कृत साहित्य का इतिहास,' भाग १ पृष्ठ १५३ । तथा वामनीय लिङ्गानुशासन की भूमिका ।
६. 'पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण' नामक १७ वें अध्याय में ।
३०