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अष्टाध्यायी के वृत्तिकार ५०१ ११-१२ जयादित्य और वामन (सं० ६५०-७०० वि०)
जयादित्य और वामन विरचित सम्मिलित वृत्ति 'काशिका' नाम से प्रसिद्ध है। सम्प्रति उपलभ्यमान पाणिनीय व्याकरण के ग्रन्थों में महाभाष्य और भर्तृहरिविरचित ग्रन्थों के अनन्तर यही वृत्ति सब से प्राचीन और महत्त्वपूर्ण है । इस में बहुत से सूत्रों की वृत्ति और उदाहरण प्राचीन वृत्तियों से संगृहीत हैं।' 'काशिका' में अनेक स्थानों पर महाभाष्य का अनुकरण नहीं किया गया, इससे काशिका का गौरव अल्प नहीं होता। क्योंकि ऐसे स्थानों पर ग्रन्थकारों ने प्रायः प्राचीन वत्तियों का अनुसरण किया है।
चीनी यात्री इत्सिग ने अपनी भारतयात्रा के वर्णन में जयादित्य को काशिका का रचयिता लिखा है। उसने 'वामन' का निर्दश नहीं किया। संस्कृत वाङमय में अनेक ग्रन्थ ऐसे हैं, जिन्हें दो-दो व्यक्तियों ने मिलकर लिखा है परन्तु उन को उद्धृत करनेवाले ग्रन्थकार किसी एक व्यक्ति के नाम से ही सम्पूर्ण ग्रन्थ के पाठ उद्धृत करते हैं।' यथा स्कन्द और महेश्वर ने मिलकर निरुक्त की टीका लिखी, परन्तु १५ देवराज ने समग्र ग्रन्थ के उद्धरण स्कन्द के नाम से ही उदधत किये हैं, महेश्वर का कहीं स्मरण भी नहीं किया । सम्भव है कि इसी प्रकार इत्सिग ने भी केवल जयादित्य का नाम लेना पर्याप्त समझा हो। 'भाषावृत्त्यर्थ विवृति' के रचयिता सृष्टिधराचार्य ने भी भाषावृत्ति के अन्तिम श्लोक की व्याख्या में काशिका को जयादित्य विरचित ही २० लिखा है, परन्तु ध्यान रहे कि आठवां अध्याय वामनविरचित है।
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१ काशिका ४।२।१०० की वृत्ति महाभाष्य से विरुद्ध है। काशिकावृत्ति की पुष्टि चान्द्रसूत्र ३।२।१६ से होती है । अतः दोनों का मूल अष्टाध्यायी की कोई प्राचीत वृत्ति रही होगी।
.२ इत्सिग की भारतयात्रा, पृष्ठ २६६ ।
३. निरुक्त ७३१ की महेश्वरविरचित टीका को देवराज ने स्कन्द के नाम से उद्धृत किया है। देखो-निघण्टीका, पृष्ठ १६२। इसी प्रकार अन्यत्र भी।
४. काशयति प्रकाशयति सूत्रार्थमिति काशिका, जयादित्यविरचिता वृत्तिः । ८।४६॥