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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
१०. चूर्णि न्यास के सम्पादक श्रीशचन्द्र भट्टाचार्य ने श्रीपतिदत्तविरचित 'कातन्त्रपरिशिष्ट' तथा जगदीश भट्टाचार्य कृत 'शब्दशक्तिप्रकाशिका'
से चूणि के दो उद्धरण उद्धृत किये हैं५ मतमेतच्चूणिरप्यनुगृह्णाति' ।'
'संयोगावयवव्यञ्जनस्य सजातीयस्यैकस्य वानेकस्योच्चारणाभेद इति चूणिः' ।' ___ जगदीश भट्टाचार्य ने भर्तृहरि के नाम से एक कारिका उद्धृत
की है१०. हन्तेः कर्मण्युपष्टम्भात् प्राप्तुमर्थे तु सप्तमीम् ।
चतुर्थो बाधिकामाहुरचूणिभागुरिवाग्भटाः ॥ इस कारिका में भी चूणि का मत उद्धृत हैं । यह कारिका भर्तृहरिकृत नहीं है, यह हम पूर्व लिख चुके हैं ।'
इन में 'संयोगावयवध्यञ्जनस्य' उद्धरण का समानार्थक पाठ १५ महाभाष्य में इस प्रकार उपलब्ध होता है
'न व्यञ्जनपरस्यैकस्यानेकस्य वा श्रवणं प्रति विशेषोऽस्ति ।
सम्भव है कि जगदीश भट्टाचार्य ने महाभाष्य के अभिप्राय को अपने शब्दों में लिखा हो । प्राचीन ग्रन्थकार प्रायः चूर्णि और चूर्णिकार के नाम से महाभाष्य और पतञ्जलि का उल्लेख करते हैं, यह हम पूर्व लिख चुके हैं। चूणि के पूर्वोद्धृत अन्य मतों का मूल अन्वेषणीय है । हमें इस नाम की अष्टाध्यायी की कोई वृत्ति थी, इस में सन्देह है।
१. कातन्त्रपरिशिष्ट णत्वप्रकरण । न्यासभूमिका पृष्ठ ८ । २. शब्दशक्तिप्रकाशिका न्यासभूमिका पृष्ठ । ३. शब्दशक्तिप्रकाशिका पृष्ठ ३८६ । ४. पृष्ठ १०७, टिप्पणी ४ । ५. महाभाष्य ६।४।२२॥
६. पृष्ठ ३५७, ३५८ ।