________________
अष्टाध्यायी के वृत्तिकार
तन्त्रप्रदीप ८।३।७ में मैत्रेय रक्षित लिखता है -- 'सव्येष्ठा इति सारथिवचनोऽयम् । श्रत्र चुल्लिभट्टिवृत्तावपि
तत्पुरुषे कृति बहुलमित्यलुग् दृश्यते ।"
'हरिनामामृत' सूत्र १४७० की वृत्ति में लिखा है -
'हृदयङ्गमा वागिति चुल्लिभट्टिः ।'
हरदत्त ने काशिका के प्रथम श्लोक की व्याख्या में 'कुणि' का उल्लेख किया है । न्यास के उपर्युक्त वचन का पाठान्तर 'चुन्नि' है । इसकी 'कुणि' और 'चुणि' दोनों से समानता हैं ।
९. निर्लर (सं० ७०० वि० से पूर्व )
निल र विरचित वृत्ति का उल्लेख न्यास के पूर्वोद्धृत पाठ में १० उपलब्ध होता है । काशिका के व्याख्याता विद्यासागर मुनि ने भी इस वृत्ति का उल्लेख किया है ।' श्रीपतिदत्त ने 'कातन्त्र परिशिष्ट' में निरवृत्ति का निम्न पाठ उद्धृत किया हैं
निल रवृत्तौ चोक्तम् - भाषायामपि यङ्लुगस्तीति । "
2
૪૨&
पुरुषोत्तमदेव अपने 'ज्ञापक- समुच्चय' में लिखता है -- 'तेन बोभवीति इति सिद्धयतीति नैलू री वृत्तिः ।"
न्यासकार और विद्यासागर मुनि के वचनानुसार यह वृत्ति काशिका से प्राचीन है ।
१५
१. न्यास की भूमिका पृष्ठ ८
२. वृत्ताविति सूत्रार्थप्रधानो ग्रन्थो भट्टनल्पुरप्रभृतिभिर्विरचित...... । २० 'मद्रास राजकीय हस्तलेख पुस्तकालय' का सूचीपत्र भाग ३ खण्ड १ A, पृष्ठ ३५०७, ग्रन्थाङ्क २४ε३। हस्तलेख के पाठ में 'नल्पूर' निश्चय ही 'निलू' र ' का भ्रष्ट पाठ है । 'भट्ट' शब्द निलूर का विशेषण हो सकता है, फिर भी हमारा विचार है कि 'भट्ट' सम्भवत: 'चुल्लिभट्ट' के एकदेश ' भट्टि' का भ्रष्ट पाठ है ।
२५
३. न्यास की भूमिका पृष्ठ 8 । मुद्रित पाठ 'यङ लुगस्तीति' । सन्धिप्रकरण सूत्र ३३ । ४. राजशाही बंगाल मुद्रित, पृष्ठ ८७ ।
&