SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 534
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टाध्यायो के वृत्तिकार ४६७ ___ डा० काशीनाथ बापूजी पाठक के लेख को डा० वेल्वाल्कर' तथा श्री पं० नाथूरामजी प्रेमी ने भी अपने-अपने ग्रन्थों में उद्धृत करके उन के परिणाम को स्वीकार किया है। अतः इनके लेखों में भी उपर्युक्त सब भूलें विद्यमान हैं। प्रेमी जी की निरभिमानता-मैंने ८ अगस्त सन् १९४८ के पत्र ५ में श्रीमान प्रेमीजी का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया था। उसके उत्तर में आपने २१-८-१९४६ के पत्र में इस प्रकार लिखा___ 'आपने मेरे जैनेन्द्र-सम्बन्धी लेख में दो न्यूनताएं बतलाई, उन पर मैंने विचार किया। आपने जो प्रमाण दिये, वे बिल्कुल ठीक हैं। इनके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूं । यदि 'जैन साहित्य और इतिहास' १० को फिर छपवाने का अवसर प्राया, तो उक्त न्यूनताएं दूर कर दी जायेंगी।......... इस निरभिमानता और सहृदयता के लिये मैं उन का आभारी हूं। स्वर्गीय प्रेमजी ने 'जैन साहित्य और इतिहास' के द्वितीय संस्करण में मेरे सुझावो को स्वीकार करके वार्षगण्य सम्बन्धी प्रकरण १५ निकाल दिया है। व्याकरण के अन्य ग्रन्य आचार्य देवनन्दी विरचित व्याकरण के निम्न ग्रन्थ और हैं १-जैनेन्द्र व्याकरण-इसका वर्णन 'पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण' नामक प्रकरण में किया जायगा। २० २-घातुपाठ ३-गणपाठ ४–लिङ्गानुशासन ५-परिभाषापाठ, इनका वर्णन यथास्थान तत्तत् प्रकरणों में किया जायगा। ५-शिक्षा-सूत्र-देवनन्दी ने प्रापिशलि पाणिनि तथा चन्दाचार्य के समान शिक्षा-सूत्रों का भी प्रवचन किया था । यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है, परन्तु अभयनन्दी ने स्वीय महावृत्ति (१।१।२) में ४० २५ शिक्षासूत्र उद्धृत किये हैं। दुर्विनीत (सं० ५३६-५६९ वि०) महाराज पृथिवीकोंकण के दानपत्र में लिखा है१. सिस्टम्स् आफ संस्कृत ग्रामर, पैरा नं० ४६ । २. जैन साहित्य और इतिहास, पृष्ठ ११७-११६. (प्र० स०) । ३०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy