________________
अष्टाध्यायी के वृत्तिकार
४६३
और महेन्द्र नामक व्यक्ति को इतिहास में साक्षात् न पाकर पाश्चात्त्य मतानुयायी भारतीय विद्वानों ने जर्त को गुप्त' और महेन्द्र को मेनेन्द्रमिनण्डर' बनाकर अनर्गल कल्पनाएं को हैं । इस प्रकार की कल्पनाओं से इतिहास नष्ट हो जाता है । हमारे विचार में जैनेन्द्र का श्ररुणन्महेन्द्रो मथुराम् पाठ सर्वथा ठीक है । उसमें किञ्चिन्मात्र ५ भ्रान्ति की सम्भावना नहीं । आचार्य पूज्यपाद के जीवनकाल को यह महत्त्वपूर्ण घटना इतिहास में सुरक्षित है ।
१०
जैनेन्द्र उल्लिखित महेन्द्र - जैनेन्द्र व्याकरण में स्मृत महेन्द्र गुप्तवंशीय कुमारगुप्त है। उसका पूरा नाम महेन्द्रकुमार है । जैनेन्द्र के विनापि निमित्तं पूर्वोत्तरपदयोर्वा खं वक्तव्यम् ( ४|१|१३९ ) वार्तिक, अथवा पदेषु पदैकदेशान् न्याय के अनुसार महेन्द्रकुमार के लिए महेन्द्र अथवा कुमार शब्दों का प्रयोग इतिहास में मिलता है । कुमारगुप्त की मुद्राओं पर महेन्द्र, महेन्द्रसिंह, महेन्द्रवर्मा, महेन्द्रकुमार श्रादि कई नाम उपलब्ध होते हैं ।
महेन्द्र का मथुरा विजय - तिब्बतीय ग्रन्थ 'चन्द्रगर्भ परिपृच्छा' १५ सूत्र में लिखा हैं - ' यवनों बल्हिकों शकुनों (कुशनों) ने मिलकर तीन लाख सेना लेकर महेन्द्र के राज्य पर आक्रमण किया । गङ्गा के उत्तर प्रदेश जीत लिए । महेन्द्रसेन के युवा कुमार ने दो लाख सेना लेकर उन पर आक्रमण किया, और विजय प्राप्त की। लौटने पर पिता ने उसका अभिषेक कर दिया' ।
'चन्द्रगर्भसूत्र' में निर्दिष्ट महेन्द्र निश्चय ही महाराज महेन्द्र = कुमार गुप्त है, और उसका युवराज स्कन्दगुप्त । 'मञ्जुश्रीमूलकल्प' श्लोक ६४६ में श्री महेन्द्र और उसके सकारादि पुत्र ( - स्कन्दगुप्त ) को स्मरण किया है।
१. देखो - पूर्व ४९२ पृष्ठ की टि० २ ।
२५
२. 'जैनेन्द्र महावृत्ति' भारतीय ज्ञानपीठ काशी संस्करण की श्री डा० वासुदेवशरण अग्रवाल लिखित भूमिका पृष्ठ १०-११ ।
३. पं० भगवद्दत्त कृत भारतवर्ष का वृहद् इतिहास भाग २, पृष्ठ ३०७ । ४. इम्पीरियल हिस्ट्री आफ इण्डिया, जायसवाल, पृष्ठ ३६, तथा भारतवर्ष का बृहद् इतिहास, भाग २, पृष्ठ ३४८ ॥
५. महेन्द्रनृपवरो मुख्यः सकाराद्यो मतः परम् ।
३०