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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
कुछ अल्पप्रयोग ऐसे भी हैं, जिनमें 'ह' के स्थान में वर्गीय द्वितीय और चतुर्थ वर्णों का प्रयोग देखा जाता है । यथा
१. आधुनिक बोल-चाल की भाषा में संस्कृत के 'गुहा' शब्द के अपभ्रंश 'गुफा' का प्रयोग होता है।
२. पंजाबी में संस्कृत के 'सिंह' का उच्चारण "सिंघ' होता है, और गुरुमुखो लिपि में 'सिंघ' ही लिखा जाता है।
३. पंजाबी भाषा में भैंस के लिये प्रयुक्त 'मझ' संस्कृत के 'मही" शब्द का अपभ्रंश है।
४. 'दाह' का प्राकृत में 'दाध,' और 'नहुष' का पाली में 'नघुष' १. प्रयोग मिलता है 'दाह' से मत्वर्थक 'र' प्रत्यय होकर 'दाहर' शब्द
बनता है। इसी का अपभ्रंश मारवाड़ी-भाषा में 'दाफड़' (=जलने वाला फोड़ा) रूप में प्रयुक्त होता है।
५. 'अच्' प्रत्ययान्त 'रोह' (=अङ कुर') का मारवाड़ी भाषा में नये पौधे के लिये 'रूंख' 'रूंखड़ा' और गुजराती में 'रूंखडुं' अपभ्रंश १५ प्रयुक्त होता है।
६. संस्कृत के 'इह' शब्द के स्थान में प्राकृत में 'इध' का प्रयोग होता है।
७. चीनी भाषा में 'होम' के अर्थ में 'घोम' शब्द का व्यवहार होता है। २. ८. भारत की 'माही नदी ग्रीक भाषा में 'मोफिस' बन गई है ।'
____६. संस्कृत का 'अहि' फारसी में 'अफि' बन जाता है। अफीम शब्द भी संस्कृत के 'अहिफेन' का अपभ्रंश है ।
१. महिषी (भैंस) वाचक 'मही' शब्द का प्रयोग ‘महीं मा हिंसीः' (यजु० १३।४४) में उपलब्ध होता है। २. द्र० शब्दकल्पद्रुम कोश ।
२. टालेमी कृत भूगोल, पृष्ठ ३८ । इस ग्रन्थ के सम्पादक सुरेन्द्रनाथ मजुमदार शास्त्री ने पृष्ठ ३४३ पर अपने टिप्पण में लिखा है कि ग्रीक शब्द से अनुमान होता है कि इस का पुराना नाम 'माफी' था । यह योरोपीय मिथ्या भाषाविज्ञान का फल है । 'मही' शब्द टालेमी से ३३०० वर्ष पूर्ववर्ती
जैमिनी ब्राह्मण में प्रयुक्त हैं । द्र० भगवद्ददत्त कृत 'भारतवर्ष का बृहद् इतिहास' ३० भाग १, पृष्ठ ५० (द्वि० सं०) ।